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14 पंक्तियां, 24 मात्रायें

तीन बंद (Stanza)

पहले व दूसरे बंद में 4 पंक्तियां

पहली और चौथी पंक्ति तुकान्त

दूसरी व तीसरी पंक्ति तुकान्त

तीसरे बंद में 6 पंक्तियां

पहली और चौथी तुकान्त

दूसरी व तीसरी तुकान्त

पांचवीं व छठी समान्त

 

सब तो है वैसा ही, आखिर क्या है बदला

उठते बादल स्याह गगन में हैं बगुले से

छाए मन पर भाव कुम्हलाए छितरे से

दुख का सागर लहराता न तनिक भी छिछला

 

चिड़िया चहकीं पर गौरैया बहकी बहकी

इस डाली से बस उस डाली फिरती रहती

खिलीं हैं कलियां भी और कोंपल मुस्काती

फिर भी न हरियाई, बगिया अब भी न महकी

 

हर तरफ हैं किरनें चमकी और छितरी सी

न जाने क्यूं फिर भी ये अंधियारा चुभता

कोई शीशा टूट गया रह रहकर चुभता

इधर समेटूं पाखें लहुलुहान बिखरी सी

बस प्रतीक्षा शेष रही, काश! तुम आ जाओ

यहां क्षितिज पर स्वर्णिम आभा सी छा जाओ

                           - बृजेश नीरज

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Comment

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Comment by Vindu Babu on May 25, 2013 at 11:47pm
जी, बिल्कुल सही कहा आपने है आदरणीय कि 'अष्टक' का नियम इतावली में है और अंग्रेजी सानेट में सामान्यत: चतुष्पदीय बंद प्रयुक्त होते हैं।
पहली वाली टिप्पणी पर प्रकाश डालना अपनी चाहूंगी, जिसमें निवेदन था-'जब अष्टक का...''
क्योंकि पहले आप 'अष्टक' के बारे में लिखा था।
आदरणीय अभी सानेट का हिंदी में प्रादुर्भाव हो ही रहा है,तो आवश्यक नहीं है कि अंग्रेजी सानेट से ही हो,इतावली सानेट की भी छांव पड़ जाए तो बुरा क्या है? ऐसा सोंचकर वो टिप्पणी की थी।
सादर
Comment by बृजेश नीरज on May 25, 2013 at 10:47pm

राम भाई आपका आभार!

Comment by ram shiromani pathak on May 25, 2013 at 10:15pm

बहुत सुन्दर रचना, बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on May 24, 2013 at 9:46pm

आदरणीया वंदना जी फिर से आपका आभार! चर्चा को आगे ले जाते हैं। आपने अष्टक का जिक्र किया है। कुछ जानकारी इस विधा के संबंध में अब तक मैं जो इकटठा कर पाया था उसका एक अंश यहां प्रस्तुत है।

'son netˈ a poem properly expressive of a single idea or sentiment of 14 lines usu in iambic pentameter with rhymes arranged in a fixed scheme being in the Italian form divided into a major group of eight lines followed by a minor group of six lines and in a common English form into three quatrains followed by a couplet'

This is the information I collected about Sonnet. This is important in reference to your comment about Octave.

As it is very much clear that Rule of Octave is followed in Italian form while in English form Quatrains are common.

Comment by Vindu Babu on May 24, 2013 at 9:36pm
//यह रचना आपको कुछ रुचिकर लगी...//
आदरणीय मुझे पहले भी आपकी बहुत सी रचनाएं लगी हैं!
पिछली सानेट के शिल्प को सही से समझ नहीं पाई थी,और जिस शिल्प बिल्कुल अनजान हो उसका विशलेषण कैसे किया जा सकता है महोदय?
अष्टक को दो भागों में बाटने से नुकसान नही पर 'अष्टक' का स्वरूप विकृत सा लगने लगता है,तभी ऐसा निवेदन किया था।
//उन्ही नियमों का पालन करने का प्रयास किया है//
जी बिल्कुल,आपने उन्हीं मानकों पर यह सानेट प्रस्तुत की है।आपका प्रयास सफल और प्रशंसनीय है।
आदरणीय गुरुजनों की प्रतिक्रिया की सादर प्रतीक्षा मुझे भी है।
सादर
Comment by बृजेश नीरज on May 24, 2013 at 1:19pm

आदरणीय चिराग जी इस विधा में आपकी रचना की प्रतीक्षा रहेगी।

Comment by बृजेश नीरज on May 24, 2013 at 1:18pm

आदरणीया वंदना जी आपको यह रचना कुछ ठीक लगी, यह जानकर मुझे राहत मिली। आगे प्रयास करूंगा कि रचना आपको अच्छी लगे।
आपने तुकान्त व समान्त के संबंध में जिन नियमों का जिक्र किया है उन्हीं नियमों का पालन मैंने इस रचना में करने का प्रयास किया है। रही बात अष्टक के दोनों बंदों को गैप से बांटने की तो आदरणीया अंग्रेजी साहित्य की प्रथा से इतर हिन्दी में ऐसा करने का रिवाज है। जब अष्टक में दो बंद हैं तो उन्हें गैप से बांटने से क्या नुकसान हो जाता है। वैसे मैंने अपनी इस रचना में किसी अष्टक के नियम का पालन नहीं किया है। रचना जिन नियमों के तहत मैंने लिखी है उनका जिक्र मैंने रचना के प्रारम्भ में किया है।
इस विधा पर जब त्रिलोचन जी ने कार्य प्रारम्भ किया था तो अंग्रेजी साहित्य के नियमों के तहत ही किया था। त्रिलोचन जी हिन्दी के साथ साथ अंग्रेजी व उर्दू के भी विद्वान थे। बाद में इन्होंने इस विधा को हिन्दी में नया रूप दिया। मेरे विचार से तो जितने प्रयोग संभव थे उन्होंने वो सभी इस विधा पर किए।
इस विधा पर मेरी पिछली रचना अलग नियमों के तहत थी इसलिए शायद आपको रूचिकर नहीं लगी क्योंकि वह प्रयोग अंग्रेजी साहित्य से इतर है। उसमें साढ़े तीन का पद रखने का प्रयास किया गया था। उसका स्वरूप इस रचना से भिन्न है।

आगे गुरूजन क्या मार्गदर्शन देते हैं इसकी मैं भी प्रतीक्षा कर रहा हूं।
इस विधा पर परिचर्चा के आपके आहवाहन का मैं भी समर्थन करता हूं।
सादर!

Comment by Vindu Babu on May 24, 2013 at 12:21pm
आदरणीय आपकी यह स्ऑनेट पिछली सानेट से अधिक तराशी हुई प्रतीत हुई।
महोदय जब 'अष्टक' का जिक्र हो रहा है तो पहली आठ पंक्तियों को गैप से 4-4 में बांटना कुछ विसंगत सा लगा। निवेदन करना चाहूंगी पहली और चौथी में तुक करके एक बंद(stanza) सुरक्षित करके, अथवा पहली को तीसरी से और दूसरी को चौथी से तुकबंदित करके एक एक बंद सुरक्षित कर दिया जाए,तथा अगले बंद में नई तुकबंदी का अनुसरण किया जाए।अथवा अन्य तुकबंदी का नियम बंद में किया जा सकता है।
अन्तिम 6 पंक्तियों में भी आवश्यक नहीं है कि उपरोक्त बंद के नियम का अनुसरण किया जाए,इस बंद को नया नियम दिया जा सकता है,लेकिन पंक्तियों की मात्राए समान हों।वैसे कविता का अन्त दो समन्तक से करना आकर्षक लगता है(मुझे),सानेट्स में कई बार देखने को भी मिलता है।
मैं परम् वंदनीय त्रिलोचन जी के 'पथ' का बहुत सम्मान करते हए आपसे एक और हिन्दी 'सोनेट पथ' तैयार करने का सविनय अनुरोध करती हूं क्योंकि कोई विधा किसी एक नियम से तो बंधी नहीं होती। इस मंच पर सानेट की पहल करने तथा अन्य विधाओं मेंभी आपकी सक्रियता देखते हुए ऐसा आग्रह किया।
मैं इस विषय/विधा पर एक परिचर्चा का सादर आह्वाहन करती हूं,जिससे इस पर कार्य करना सुगम हो सके,साथ ही अगली सानेट की प्रतीक्षा भी।
यहाँ इस विषय पर 'कुछ' लिखने का प्रयास,अंग्रेजी सानेट्स के अध्ययन व विश्लेषण के आधार पर किया है। कुछ अपाच्य प्रस्तुत हो गया हो तो क्षमा करें।
आशा है आदरणीय चिराग जी की सानेट शीघ्र ही पढने को मिलेगी।
इतावली से अधिक अंग्रेजी सानेट विश्व में लोकप्रिय हुई,अब बारी है हिन्दस्तानियों के हुनर की...
इस विधा को गति देने में इस मंच के आदरपात्र सुविज्ञ बहुमुखी प्रतिभाओं/अग्रजों का सहयोग आशातीत् है।
सादर
Comment by Kedia Chhirag on May 24, 2013 at 9:33am

आदरणीय बृजेश जी ,आपका अत्यंत आभार ,आपने इस विधा के सन्दर्भ में काफी अच्छी जानकारी प्रदान की है .....जिससे काफी कुछ समझ पाना मेरे लिए संभव हो पाया और अब तो स्वयं भी इस विधा पर कार्य करने की अभिलाषा हो रही है........बहुत बहुत धन्यवाद ......... 

Comment by बृजेश नीरज on May 23, 2013 at 8:24pm

आदरणीया संजू जी आपका आभार!

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