सपने की झलक
स्वर्णिम कल्पनाओं में पले, सलोने-से, परितुष्ट सपने मेरे,
लगता है कई संख्यातीत संतप्त युगों पर्यन्त मैंने तुमको
आज जीवन-गति की लय पर यूँ ध्वनित देखा, गाते देखा।
वर्तमान के उजले संगृहीत प्रकाश में पुन: प्रदीप्त थे तुम,
समय की धारा पर मैंने तुमको लहरों-सा लहलहाते देखा।
जाने कितने अवशेष हैं अब सुख-निद्रा के यह प्रसन्न-पल,
गिने-चुने पलों की झोली भर कर रंजित मन में संप्रयुक्त
ऐसे ही उल्लास में अपने तू सतत हँसता चल, गाता चल।
सुखकर यादों की अरुणायी से, आशाओं के नए दीप जलाले,
दीप की बाती को ऊँचा कर ले, मिट जाएँ अँधेरे चिरकाल के,
अब योजनीय न बन तू, मत उलझ दलीलों के तंतुजाल में,
कौन कहे, कब आँख खुले, खुलते ही टूट जाए कब यह सपना,
जलती गरमी में सूखते नल से टप-टप करते पानी की तरह,
या, हो जाए चूर यह सपना, किसी चिटके हुए शीशे की तरह,
इसीलिए सहज आनंद की प्रतिमाएँ संजोए आज तू गाता चल,
नव-जीवन का आलिंगन कर ... बस हँसता चल, तू गाता चल।
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-- विजय निकोर
२५ मई, २०१३
मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
नव-जीवन का आलिंगन कर ... बस हँसता चल, तू गाता चल।... बेहद सुन्दर कल्पना
जी गणेश जी किन्तु यह तो काव्य की किसी कोटि में आता हो यह मुझे संभवतः ज्ञात नहीं है.....इसी कारण मुझे लगा की वे लोग संभवतः मुझसे कहीं अधिक विद्वान् होंगे और मेरा मार्गदर्शन करने में सक्षम होंगे.......इस कारण पूँछ लिया......भविष्य में आपके निर्देशों का पालन करूँगा
आदरणीय डॉ आशुतोष बाजपेयी जी, बड़े ही आदर के साथ कहना चाहता हूँ कि आप किसी भी रचना पर अपना मंतव्य दे, आलोचना करें यह आपका अधिकार है । किन्तु यदि अन्य पाठक टिप्पणी कर रहे हैं तो यह उनका अधिकार है और उस पर कारण पृच्छा न करें आदरणीय ।
बधाई के योग्य यह तब होता जब उत्कृष्टता के साथ गद्य में लिखा गया होता........अभिनव जी और रोहित जी अब मै आप से प्रश्न कर रहा हूँ की काव्य के किस मापदण्ड में परख कर आपने इस रचना पर बधाई प्रेषित की
oh my God ! यह निर्वाण के पथ पर चलने वाली प्रेरणा पथ...........या .....जीवन का एक पथ खत्म होने और दूसरे पथ के शुरूआत होने का शुभ संकेत.........यह अध्यात्म चिंतन से प्रेरित रचना बहुत लोगों को मार्ग्दर्शन करेगी .
आदरणिय विजय जी , आपको मेरा प्रणाम .
सौन्दर्य परक मधुर भावों की रचना के बहुत बधाई श्री निकोरे जी !
Ati umda rachna .............badhai
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