मानव दौड़ें राह पर, थकते उसके पाँव
आत्मा नापे दूरियाँ, नगर डगर हर गाँव |
थक जाते है पाँव जब, फूले उसकी साँस,
मन तो अविरल दौड़ता,मन में हो विश्वास |
सार्थक मन की दौड़ है, भौतिकता को छोड़
सही राह को जान ले, उसी राह पर दौड़ |
पञ्च तत्व से तन बना, जिसका होता अंत
बसते मन में प्राण है, जिसकी दौड़ अनंत |
भौतिकता को छोड़ कर, अंतर्मन की मान,
दिल गवाह जो भी करे, उस पर देना ध्यान
(मौलिक एवं स्वरचित)
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
जयपुर दि. २९-५-२०१३
Comment
दोहे पसंद कर मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री श्याम नारायण वर्मा जी | शुभ शुभ
दोहे पसंद कर टिपण्णी करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री जवाहर लाल सिंह जी, एवं श्री राम शिरोमणि पाठक जी
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ..... |
आपने सुन्दर दोहे रचे है आदरणीय//// हार्दिक बधाई //
भौतिकता को छोड़ कर, अंतर्मन की मान,
दिल गवाह जो भी करे, उस पर देना ध्यान.
अति सुन्दर !
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