छंद विधान - रगण जगण' की ५ आवृत्तियों के बाद एक गुरु
राष्ट्र स्वाभिमान की प्रतीक है ध्वजा त्रिवर्ण किन्तु अग्नि वर्ण केतु का रहा न मान है
द्रोह की प्रवृत्ति द्रोह को बता रही महान और दिव्य भारतीयता रही न ध्यान है
अन्धकार का प्रसार हो रहा अपार बन्धु मानवीय मूल्य का न लेश मात्र ज्ञान है
राष्ट्रवाद का झुका हुआ निरीह शीश देख राष्ट्रद्रोह का यहाँ तना हुआ वितान है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
Comment
आ0 आशुतोष भाई जी, देश प्रेम से परिपूर्ण और राष्ट्र विरोधियों पर करारा व्यंग्य। अतिसुन्दर छन्द। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
राष्ट्र द्रोह के प्रति आपकी काव्यात्मक लेखनी खूब चलती है आदरणीय श्री आशुतोष वाजपेयी जी
निसंदेह मानवीय मूल्यों का अवमूल्यन हो रहा, जिस और लेल्श मात्र भी किसी का ध्यान नहीं है
जन जन को जाग्ररुक करने का कवी का दायित्व बखूबी निर्वाह करने केलिए साधुवाद | काव्य के लिए बधाई
बहुत सुन्दर भाव ...
ज्योतिषाचार्य जी , करजोड़ प्रणाम, आपके गुरू गंभीर पद्य पढ़कर मन गद्गद हो गया. आपके आशिर्वाद से आशा है तिमिर में लिपटे मानव को दिव्यता प्राप्त हो .
विनीता/ कुंती .
बहुत बहुत आभार राम शिरोमणि जी, संदीप कुमार जी.....आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए अमूल्य है
आदरणीय आशुतोष सर जी बहुत ही सुंदर///प्रणाम सहित हार्दिक बधाई
आदरणीय आशुतोष सर जी बहुत ही सुंदर छन्द रचा है आपने साधुवाद इस अनुपान रचना हेतु सादर
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