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ग़ज़ल- जिन्दगी तुमसे लड नहीं पाया।।।

जिन्दगी तुमसे लड नहीं पाया ।
हमने आख़िर में ख़ुद को समझाया।।

कुछ नहीं आदमी के हाथों में,
मरते-मरते ये सबने समझाया।।

जिन्दगी भर गरूर रहता है,
मौत के वक़्त ये नहीं पाया।।

जिन्दगी हर कसौटी पर जी,ली,
इसलिये राम,राम कहलाया।।

आदमी लालची ही होता है,
भूल जाता है राम की माया।।

मैं बहकता रहा हूँ उतना ही,
आपने मुझको जितना बहकाया।।

रात से हमको मिलती शीतलता,
रात ने शांत रहना सिखलाया।।

प्रेम परमात्मा से उपजा है,
प्रेम है आत्मा की प्रतिछाया।।


...सूबे सिंह "सुजान"

यह ग़ज़ल मौलिक व अप्रकाशित है। आप सब प्रभुत्वजनों को समक्ष प्रस्तुत है।

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Comment

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Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on June 2, 2013 at 1:34pm

बहुत अच्छा प्रयास है गजल पर आदरणीय सूबे सिंह जी... सादर बधाई स्वीकारें...

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 1, 2013 at 10:25pm

आदरणीय सूबे सिंह साहब बहुत खूब प्रयास बहुत ही सुन्दर एवं लाजवाब है. मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by सूबे सिंह सुजान on June 1, 2013 at 9:42pm
KISHAN KUMAR, जी आपका आभारी हूँ। आपकी प्रतिक्रिया पर आपका धन्यवाद करता हूँ।
Comment by सूबे सिंह सुजान on June 1, 2013 at 9:40pm
Saurabh Pandey...ji namskar, आपकी आलोचनात्मक प्रतिक्रिया पर , आपका आभारी हूँ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 1, 2013 at 6:48pm

एक बेहतर कोशिश के लिए आपको हार्दिक बधाई, भाई सूने सुजान सिंह जी. 

ग़ज़ल का अंदाज़ सुफ़ियाना है.

ध्यान से देखे तो मतले में ऐबे शुतुर्गुर्बा हो रहा है. उला में मैं सर्वनाम छुपा लगता है जबकि सानी में हम सर्वनाम आया है. इस फ़र्क पर ग़ौर कीजियेगा.

मैं बहकता रहा हूँ उतना ही,
आपने मुझको जितना बहकाया.. . . इस शेर पर अलग से दाद लीजिये.

मेहनत करते  रहें.

शुभेच्छाएँ

Comment by सूबे सिंह सुजान on June 1, 2013 at 5:26pm

नादिर ख़ान.....जी, आपका स्वागत है ।
प्रतिक्रिया पर आपका शुक्रिया।।

Comment by नादिर ख़ान on June 1, 2013 at 5:09pm

कुछ नहीं आदमी के हाथों में, 
मरते-मरते ये सबने समझाया।।

जिन्दगी भर गरूर रहता है, 
मौत के वक़्त ये नहीं पाया।।

बहुत सही कहा आदरणीय सुजान  जी ।

Comment by सूबे सिंह सुजान on June 1, 2013 at 5:03pm

आशीष नैथानी 'सलिल आपका स्वागत है। बधाई पर बधाई हमने पाई।।
शुक्रिया

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on June 1, 2013 at 12:05pm

मैं बहकता रहा हूँ उतना ही,
आपने मुझको जितना बहकाया।।

वाह ! बहुत खूब !!
हार्दिक बधाई सूबे सिंह सुजान जी !

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