माहिया पंजाब से उपजा है। जो कि शादी-ब्याह में गाया जाता रहा है।
माहिया का छन्द है मात्रायें- तीन चरणों में पहले में 2211222 दूसरे में 211222 तीसरे में 2211222
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माहिया-1.
कजरा ये मुहब्बत का,
तुमने लगाया है,
आँखों में कयामत का।
2.
कजरा तो निशानी है,
अपनी मुहब्बत की,
चर्चा भी सुहानी है।
3.
आँखों से बता देना,
तुमने कंहाँ सीखा,
ये तीर चला देना।
4.
ख़ुद तीर चलाते हो,
दोष हमारा क्या,
तुम ही तो सिखाते हो।
5.
कुछ सीख नहीं पाया,
नैन मिलाते ही,
उसने मुझे समझाया।
6.
जो सीख नहीं पाये,
उनके लिये समझो,
दुनिया में नहीं आये।
7.
जो आज करोगे तुम,
उसपे ही जीवन भर,
बस राज करोगे तुम।
8.
मत झूठ कभी बोलो,
झूठ भी हत्या है,
हर बात सही बोलो।
9.
जब धूप निकलती है,
बर्फ़ पिघलती है,
फिर इक नही चलती है।
10.
मैदान में आती है,
एक नदी हंसकर,
खामोश हो जाती है।
11.
वो पेड कटाते हैं,
पैसा कमाते हैं,
हरियाली मिटाते हैं।
सूबे सिंह सुजान
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सूबे सुजान सिंह जी ये ठीक है कहीं कहीं गायन के हिसाब से किसी वर्ण को गिराकर पढ़ सकते हैं जैसे की कई बार ग़ज़लों में भी होता है किन्तु जहां गायन पर लय ठीक आ रही हो तो मात्रा का ध्यान तो रखना ही चाहिए जैसे इसी बंद को ले लो ---
जो आज करोगे तुम,
उसपे ही जीवन भर,-----यहाँ १२ मात्राएँ ली हैं आपने ---इस पंक्ति में आप यदि ही हटा देते तो मात्र भी १० हो जाती और लय भी नहीं टूटती,पहली और तीसरी पंक्ति बिलकुल ठीक हैं
बस राज करोगे तुम।------
जब धूप निकलती है,
बर्फ़ पिघलती है,--------बर्फ पिघलने पर ,-----इस संशोधन के साथ गाकर देखिये
फिर इक नही चलती है।
मुझे जो आज तक माहिया के विषय में नियम मालूम थे वही आपसे साझा किये हैं सस्नेह
rajesh kumari आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया प्राप्त हुई.......धन्यवाद..
परन्तु मेरे उस्ताद ने यही मात्रायें बताई हैं जो उपर वर्णित है।
जो आज करोगे तुम,
उसपे ही जीवन भर,-----यहाँ भी गेयता ठीक नहीं है
बस राज करोगे तुम।
8.
मत झूठ कभी बोलो,
झूठ भी हत्या है,----१ १ मात्राएँ हो रही हैं
हर बात सही बोलो।
9.
जब धूप निकलती है,
बर्फ़ पिघलती है,--------बीच की पंक्ति तुकान्त लेंगे तो कैसे गायेंगे ??
फिर इक नही चलती है।
10.
मैदान में आती है,
एक नदी हंसकर,
खामोश हो जाती है।
11.
वो पेड कटाते हैं,
पैसा कमाते हैं,
हरियाली मिटाते हैं।-----आपके कई बन्दों में मात्राएँ विधान के अनुसार नहीं हैं कहीं कहीं गेयता भी प्रभावित हो रही है जिस बंद में आपने तीनो पद में तुकान्त शब्द लिए हैं ,माहिया के ऊपर आपने बहुत सुन्दर प्रयास किया है ओ बी ओ पर ही मेरे ब्लॉग में आपको माहिया मिलेगा और आदरणीय योगराज जी की प्रतिक्रिया भी जरूर पढ़ें जिसमे उन्होंने काफी स्पष्ट किया है और माहिया गायन की परफोर्मेंस पर एक विडियो भी मिलेगा जिसमे हमने माहिया गया है वक़्त मिले तो देखिएगा बहुत प्यारी विधा है इन बन्दों को सुधारेंगे तो चमक उठेगा ये माहिया। फिलहाल हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर ।
आदरणीय, माहिया बड़ी सुंदर प्रस्तुत की हैं आपने, बड़े दिनों बाद किसी माहिया को पढ़कर बहुत अच्छा लगा, सादर
आदरणीय सूबे सिंह जी, अच्छी 'माहिया' प्रस्तुत की आपने... हार्दिक बधाई स्वीकारें...
बहुत बहुत बधाई, भाई सुजान जी.
आपकी माहिया का कथ्य तो लाज़वाब है. बहुत सुन्दर !
यदि उर्दू नज़्मों या ग़ज़ल के अरुज़ से साधा जाय तो आपके सभी बंद नियमानुसार हैं. लेकिन छंद की नियमावलि के अनुसार इस पर चर्चा हो सकती है जिस ओर भाई बृजेशजी ने इशारा किया है.
माहिया की संकल्पना पंजाब क्षेत्र और आस-पास की है जहाँ के साहित्य और वहाँ की भाषा पर उर्दू और अरुज़ का अत्यधिक प्रभाव है. अतः मात्राओं (वज़्न) की गणना प्रभावित होतो आश्चर्य नहीं.
मैं आदरणीय योगराजभाईसाहब से इन विन्दुओं पर प्रकाश डालने का सादर अनुरोध करता हूँ.
आपका धन्येबाद !
यह तो बहुत सुखद रहा कि आपके माध्यम से एक नई विधा सीखने को मिली। इसके लिए आपका साधुवाद!
माहिया के विषय में जो जानकारी मेरे पास उपलब्ध है वह यह है-
//माहिया पंजाब के प्रेम गीतों का प्राण है । पहले इसके विषय प्रमुख रूप से प्रेम के दोनों पक्ष- संयोग और विप्रलम्भ रहे हैं। वर्तमान में इस गीत में सभी सामाजिक सरोकारों का समावेश होता है। तीन पंक्तियों के इस छ्न्द में पहली और तीसरी पंक्ति में १२ -१२ मात्राएँ तथा दूसरी पंक्ति में १० मात्राएँ होती हैं। पहली और तीसरी पंक्तियाँ तुकान्त होती है।//
उदाहरण-
//इसकी परिभाषा से
हम अनजान रहे
जीवन की भाषा से// - प्राण शर्मा
आपके पहले बंद की पंक्तियां और उनकी मात्रायें इस प्रकार हैं।
112 2 12 11 2=13
कजरा ये मुहब्बत का,
112 122 2=11
तुमने लगाया है,
22 2 1211 2=13
आँखों में कयामत का।
इसके आधार पर तो आपकी रचना खारिज मानी जाएगी। आप इस पर प्रकाश डालें तो अच्छा रहेगा। हिन्दी में मात्रा गिराने का कोई नियम नहीं लागू होता।
thnx sir
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