For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो खुदाया पास मेरे आ रही है (ग़ज़ल)

बहर --रमल मुसद्दस सालिम 

2122   2122   2122

 

उम्र जितनी तेज़ बढती जा रही है 

वो खुदाया पास मेरे आ  रही है 

 

राह में किस मोड़ पर हो जाए मिलना  

जिन्दगी ये सोचती सी  जा रही है 

 

क्या किसी तूफ़ान का संकेत है ये 

रेत  में बुलबुल नहा कर  जा रही है

 

जानते हैं  भाग्य अपना पीत  पत्ते

फ़स्ल देखो पतझड़ों की आ रही है  

 

खुल गयीं  हैं जुल्फ उसकी आज शायद 

वादियों में जो घटा सी  छा रही है 

 

बादलों में दूर इक परछाई आकर  

ख़ास कर क्यों  मुस्कुराती जा रही है 

 

क्या खबर किस  रोज़  सज जाएगा मंडप 

सोच दुल्हन पैरहन    सिलवा रही है  

 

लौट  जाएगा परिंदा नीड़  में फिर 

सोच कर क्यों झुरझुरी सी आ रही है 

 

जो अधूरे काम अब  वो पूर्ण कर ले 

'राज' फिर ये जिंदगानी जा रही  है  

************************************

(मौलिक अप्रकाशित )

 

Views: 1618

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 5, 2013 at 9:15pm

वाह वाह वाह आदरणीया ग़ज़ब की ग़ज़ल पेश की है आपने 

सुन्दर और सहज शब्दावली मोतियों से जड़े अशआर वाह 

ढेरों दाद क़ुबूल कीजिये सादर 

Comment by Abid ali mansoori on June 5, 2013 at 9:08pm
क्या किसी तूफान का संकेत है यह,
आज बुलबुल रेत मेँ नहा रही है..वाह मन को छूती रचना,हार्दिक बधाई आपको!
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on June 5, 2013 at 8:58pm

आदरेया,

एक सुन्दर ग़ज़ल प्रस्तुत की आपने! विशेष तौर पर यह शे'र पसंद आया ..

क्या किसी तूफ़ान का संकेत है ये 

आज  बुलबुल  रेत  में नहा रही है --  बहुत ही ख़ूबसूरत ख़याल लगा यह! मिस्रए सानी पर नज़रे सानी फ़रमा लें.. प्रवाह तनिक बाधित प्रतीत हो रहा है! सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service