आओ ज़रा शहर निहारें
चमचमाती सड़कों पर
चमचमाती कारें
ऊँचे ऊँचे दीप्ति खंभ
अँधेरे को पीते
बड़े बड़े लट्टू
रग रग में संचरित होता दंभ
सुन्दर बाग़
ये महल अटारी
मशीन भारी भारी
और कुछ बड़ी बीमारी
सब तन रहा है
गाँव गाँव
अब शहर जो बन रहा है
बढ़ रहा है
धीरे धीरे
अटारी पर अटारी
तानी जा रही हैं
जो प्रगति की निशानी
मानी जा रही है
बेशुध हुआ सा आदम
भागा जा रहा है
अरमानों के मकाँ बनाने
प्रगति के ऊँचे शिखर
ऊँचे ऊँचे
बहुत ऊँचे
इनमें है मजबूती बला की
जिनकी नींव में दफ़न है
हरे भरे जंगल
खेत खलिहान
चिड़ियों की चहक
मिटटी की महक
और गाँव का दाना पानी
खून पसीना
संभ्यता संस्कृति
की निशानी
ये नींव की ईंटें
जिन पर खड़े होते हैं
प्रगति के महल
जो रौंद देते हैं
पिछड़ेपन की सारी निशानियाँ
मैं भी अरमान सजाता हूँ
और खडा करना चाहता हूँ
प्रगति के महल
किन्तु
ये ईंटें लगा पाने का
साहस नहीं है मुझ में
मैं देखता हूँ
इन्हें अल्हड
लहलाहते
चहचहाते
अपनी धुन मैं
और लौट आता हूँ
अपने पिछड़ेपन के साथ
लिए इन सुनहरी
ईंटों की कुछ यादें
जिनमें धुंधला सा दीखता है
एक नक्शा , अधूरा सा
प्रगति के महल का
धत्त तेरी की
हम पिछड़े लोग
प्रगति के दुश्मन
संदीप पटेल “दीप”
Comment
रचना का विषय अच्छा एवं बड़ा ही लोकप्रिय है जिसमें संवेदना एवं कसावट दोनों की दरकार है । मेरे हिसाब से थोड़ा छोटी होती एवं अधिक कसावट लिए होती तो बेहतर होता । लंबी रचना अगर गेय ना हो तो मुझे थोड़ा कष्ट होता है पढ़ने में
भाई संदीप कुमार पटेल जी,जयपुर जैसे शहर का खांका तो खिंचा, कथ्य भी सारे समाये पर रचना गद्य सी लग रही है |
बहरहाल सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारे
आदरणीय संदीपजी, आपकी अतुकांत रचनाओं के ऊपर अंतर्निहित अभिव्यक्ति को संयत करने और तदनुरूप संप्रेषित करने का बहुत बड़ा दायित्त्व है. हो सकता है मैं स्पष्ट नहीं कर पा रहा होऊँ. लेकिन वह कुछ अवश्य है जिससे पद्यांश एक सुगढ़ रचना बनते-बनते रह जाते हैं.
प्रयास के लिए हार्दिक बधाई
बहुत ही सुन्दर आधुनिकता पर सुन्दर व्यंग भाई संदीप जी ///हार्दिक बधाई
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online