For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आओ ज़रा शहर निहारें
चमचमाती सड़कों पर
चमचमाती कारें
ऊँचे ऊँचे दीप्ति खंभ
अँधेरे को पीते
बड़े बड़े लट्टू
रग रग में संचरित होता दंभ

सुन्दर बाग़
ये महल अटारी
मशीन भारी भारी
और कुछ बड़ी बीमारी

सब तन रहा है
गाँव गाँव
अब शहर जो बन रहा है
बढ़ रहा है
धीरे धीरे
अटारी पर अटारी
तानी जा रही हैं

जो प्रगति की निशानी 

मानी जा रही है 

बेशुध हुआ सा आदम
भागा जा रहा है
अरमानों के मकाँ बनाने
प्रगति के ऊँचे शिखर
ऊँचे ऊँचे

बहुत ऊँचे

इनमें है मजबूती बला की
जिनकी नींव में दफ़न है

हरे भरे जंगल
खेत खलिहान
चिड़ियों की चहक
मिटटी की महक
और गाँव का दाना पानी
खून पसीना
संभ्यता संस्कृति
की निशानी 

ये नींव की ईंटें 

जिन पर खड़े होते हैं 

प्रगति के महल

जो रौंद देते हैं 

पिछड़ेपन की सारी निशानियाँ 

मैं भी अरमान सजाता हूँ 

और खडा करना चाहता हूँ 

प्रगति के महल 

किन्तु 

ये ईंटें लगा पाने का

साहस नहीं है मुझ में 

मैं देखता हूँ 

इन्हें अल्हड 

लहलाहते 

चहचहाते 

अपनी धुन मैं 

और लौट आता हूँ 

अपने पिछड़ेपन के साथ 

लिए इन सुनहरी

ईंटों की कुछ यादें

जिनमें धुंधला सा दीखता है

एक नक्शा , अधूरा सा  

प्रगति के महल  का 

धत्त तेरी की 

हम पिछड़े लोग 

प्रगति के दुश्मन 

संदीप पटेल “दीप”

Views: 512

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on June 7, 2013 at 2:49pm

रचना का विषय अच्‍छा एवं बड़ा ही लोकप्रिय है जिसमें संवेदना एवं कसावट दोनों की दरकार है ।  मेरे हिसाब से थोड़ा छोटी होती एवं अधिक कसावट लिए होती तो बेहतर होता । लंबी रचना अगर गेय ना हो तो मुझे थोड़ा कष्‍ट होता है पढ़ने में

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 6, 2013 at 11:31am

भाई संदीप कुमार पटेल जी,जयपुर जैसे शहर का खांका तो खिंचा, कथ्य भी सारे समाये पर रचना गद्य सी लग रही है |

बहरहाल सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारे 

Comment by विजय मिश्र on June 6, 2013 at 9:59am
दो स्तरों पर विकसित हो रहे इस नई संस्कृति का सार्थक चित्रण और एक कचोट.संदीपजी!
व्यंगभाव से परिपूर्ण एक कटाक्ष युक्त सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकारे .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 6, 2013 at 7:55am

आदरणीय संदीपजी, आपकी अतुकांत रचनाओं के ऊपर अंतर्निहित अभिव्यक्ति को संयत करने और तदनुरूप संप्रेषित करने का बहुत बड़ा दायित्त्व है.  हो सकता है मैं स्पष्ट नहीं कर पा रहा होऊँ. लेकिन वह कुछ अवश्य है जिससे पद्यांश एक सुगढ़ रचना बनते-बनते रह जाते हैं.

प्रयास के लिए हार्दिक बधाई

Comment by ram shiromani pathak on June 6, 2013 at 12:38am

बहुत ही सुन्दर आधुनिकता पर सुन्दर व्यंग भाई संदीप जी ///हार्दिक बधाई

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 5, 2013 at 10:46pm
आदरणीय..संदीप जी, अति सुंदर रचना आपकी..अपनी पंक्तियों में सच कहा आपने "बेशुध सा आदम भागा जा रहा है " ...आदरणीय बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service