दोहन करते प्रकृति का, बड़े बड़े विद्वान्
चला चला बस योजना, बनते खूब महान
बनते खूब महान , हरे जंगल कटवाते
दूषित कर परिवेश, कारखाने बनवाते
धरा बचाने आज, नहीं आने मनमोहन
अब तो कर दो बंद, लोगो प्रकृति का दोहन
संदीप पटेल “दीप”
Comment
संदीप भाई बहुत सुन्दर! आपको ढेरों बधाई!
यह कड़वी सच्चाई हर किसी से छिपा नहीं......विडम्बना देखिये धरती का दोहन करते करते अब इंसान की नज़र उसके भाई पर
(मंगल ग्रह ) पड़ गयी है......देखें अब क्या होता है.
सादर
कुंती
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए …………….. |
सुन्दर कुंडलिया छंद के माध्यम से अन्धाधुल्न्ध दोहन के प्रति चेतावनी देती रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री संदीप कुमार पटेल जी
सुन्दर कुण्डलिया के लिए बधाई किन्तु......प्रकृति का लोगो दोहन.....ऐसा कीजिये तो प्रवाह अधिक आयेगा....ऐसा मुझे लगता है
आदरणीय संदीप जी बहुत सुन्दर कुण्डलिया की रचना की है टिप्पणी के तौर पर रविकर जी की रचना भी सराहनीय है.
बहुत बढ़िया आदरणीय संदीप जी-
शुभकामनायें-
दोहन हनन समान तब, जब मनमोहन मौन |
हनवाना हरदिन करे, रोक सकेगा कौन |
रोक सकेगा कौन, स्वयं कुदरत कुछ कर दे |
करे स्वयं संतुलित, स्वयं कुछ ऐसा वर दे |
सत्ता पाए शक्ति, सुधारे खुद के गोहन |
रोके बन्दर बाँट, तभी रुक पाए दोहन ||
मनमोहने का श्लेष मज़ा दे गया..
इस संदेशपरक कुण्डलिया के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय संदीप जी.
आदरणीय संदीप जी बहुत ही सुन्दर कुण्डलिया रची है भाई अपने ///बधाई!
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