ये आदत अच्छी नही तुम्हारी
मेरा दिल जलाने की
तुम्हारा ही घर जलता है
आदत से बाज आ जाओ ....
न सुनते हो न समझते हो
बिना बात के मुझ पर बरसते हो
तुम्हारा ही चैन खोता है
आदत से बाज़ आ जाओ
यूँ आँखे क्यों दिखाते हो
यूँ मुझको क्यों डराते हो
तुम्हारा ही रूप बदलता है
आदत से बाज़ आ जाओ
यूँ मुझसे नज़रे क्यों चुराते हो
मुझे इतना क्यों तडपते हो
तुम्हारा ही दिल तड़पता है
आदत से बाज़ आ जाओ .....!!!!!
मौलिक व अप्रकाशित रचना
Comment
जिनको कहा गया वे सुनें न सुनें, हम सभी अवश्य सुन रहे हैं.. .. :-))
और सुन कर यही कहना है..
मेहनत करते रहें .. और इस मंच पर विधाओं से सम्बन्धित कई अच्छे आलेख हैं. उन्हें मनोयोग से खूब पढ़ें.
शुभेच्छाएँ
अच्छी सीख देती अभ्व्यक्ति के लिए बधाई
बढ़िया लयात्मक नसीहत है ...
बधाई
वैसे अगर आदत है तो एक दिन में कहाँ बदलेगी ... हा हा हा
प्रिय सोनम जी .. कई सी हैं ?
किसकी बजा डाली J)..
बढियां है..:)))-
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