पिता परमात्मा सा होता है
जो जन्म देकर दुनिया में ले आता है
वो दुनिया दिखाने वाला पिता,परमात्मा से कैसे कम है
हमारी आहट से जो सन्न हो जाता है
जिसके भीतर हर पल हमारे पालन की चिन्ता पलती है
जो हमें जन्म देने के बाद,
अपने सारे सुख भूल जाता है।।
दुनिया में हमारे आने के बाद
वो एक राह पर ही चलता है
और अपने पुरातन ताज्य कार्य भी छोड देता है
उसकी दुनिया हमारी आहट से बदल जाती है
वो पिता परमात्मा सा होता है।।
सूबे सिंह सुजान
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
vijayashree........... आपका आभार,,,,,,आपने अपने विचारों से अवगत कराया.........धन्यवाद...........
coontee mukerji....जी , आपका आभार,,,,,,आपने अपने विचारों से अवगत कराया.........धन्यवाद
बृजेश नीरज......ji,,आपकी बात से सहमत हूँ गद्यात्मक से बचना चाहिये..........और मैं बचता भी हूं ......यह कभी-कभार होजाता है
माता -पिता के बारे में जितना भी लिखा जाए ..कम ही लगता है ...
सुंदर रचना /बधाई
बहुत सुंदर सुजान जी /सादर / कुंती
आदरणीय सुजान जी,
माता पिता की महिमा जितनी गायी जाए उतनी कम है। आपको इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।
आपसे एक निवेदन है कि अतुकांत लिखते समय कृपया गद्यात्मकता से बचने का प्रयास करना चाहिए।
सादर!
Rajesh Kumar Jha....जी............आपकी प्रस्तुति सही है
अहत पुरुष जारे पितु-माता,तिसपर कन्यादान विधाता
चास करे औ फसल चराए, ठूंठ चूस मन को समझाए
Shyam Narain Verma..........जी स्वागत
बिल्कुल सच लिखा है आपने । एक पिता अपने दायित्व को वहन करते हुए अर्धनारीश्वर ही होता है । कुछ पंक्तियां पिता के लिए मेरी तरफ से यूं हैं
' अहत पुरुष जारे पितु-माता,तिसपर कन्यादान विधाता
चास करे औ फसल चराए, ठूंठ चूस मन को समझाए
सादर
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