मित्रॊ,,,,
मॆरा यह किसी बह्र मॆं कहनॆ का प्रथम प्रयास
आप सबकॆ चरणॊं मॆं समर्पित है,ख़ामियां बतानॆ की कृपा करॆं,,,
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मुफ़ाईलुन (हजज़)
वज्न = १२२२, १२२२, १२२२, १२२२
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कहीं हमनॆ सुना था इस, ज़मानॆ मॆं हिफ़ाज़त है !!
यहाँ हर एक कॆ दिल मॆं, अदावत ही अदावत है !!१!!
उठा रक्खा चराग़ॊं नॆं, कभी सॆ आसमां सर पर,
सुना है आँधियॊं सॆ चल, रही उनकी बग़ावत है !!२!!
अदा कॆ साथ दॆतॆ हैं, दुहाई वॊ सदाक़त की,
बड़ॆ कम-ज़र्फ़ हैं दॆखॊ, यही उनकी लियाक़त है !!३!!
कभी बदला नहीं करती,लकीरॊं सॆ लुटी किस्मत,
मिला है नाम भी सब कॊ, जिसॆ जैसी महारत है !!४!!
फ़ना हॊकॆ रहूँगा मैं, दिलॊं कॆ दरमियां सुन लॊ,
भुलावॊगॆ मुझॆ कैसॆ, खरी मॆरी इबादत है !!५!!
बुला लॆना कभी मुझकॊ, सदां दॆकॆ चला आऊँ,
भुला दॊगॆ अग़र दिलसॆ,नहीं तुमसॆ शिकायत है !!६!!
लियॆ हूँ याद उनकी यॆ, निसानी है मुहब्बत की,
कभी तॊ काम आयॆगी, मुझॆ इसकी ज़रूरत है !!७!!
सफ़ीना बीच मॆं है तॊ, अभी दम-ख़म नहीं टूटा,
समंदर सॆ जरा कह दॊ, हमॆं तूफ़ां कि आदत है !!८!!
कहा था आपनॆ कह दॊ,हक़ीक़त आज सारी तुम,
हमारी बात सॆ इतनी,किसी कॊ क्यूँ ख़िलाफ़त है !!९!!
हमीं नॆं "राज" खॊलॆ हैं, मुखौटॊं सॆ हटा चॊंगा,
कई बाज़ार दॆखॆ हैं, जहाँ बिकती शराफ़त है !!१०!!
कवि - "राज बुन्दॆली"
१६/०६/२०१३
पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
//कहा था आपनॆ कह दॊ,हक़ीक़त आज सारी तुम,
हमारी बात सॆ इतनी,किसी कॊ क्यूँ ख़िलाफ़त है !!९!!//
आपके खयाल अच्छे हैं, मिसरे अच्छे बने हैं। बधाई।
सादर,
विजय निकोर
आ0 बुन्देली सर जी, सुन्दर गजल हुई है। अतिशय बधाई स्वीकारें। सादर,
उठा रक्खा चराग़ॊं नॆं, कभी सॆ आसमां सर पर,
सुना है आँधियॊं सॆ चल, रही उनकी बग़ावत है...........हर गज़ल बड़ी ही खूब सूरती से लिखी गयी है............सादर / कुंती.
बहुत उम्दा रचना.........................राजा बुंदेला जी,बधाई
आशीष नैथानी 'सलिल' जी,,,आपकी इस हौसला-आफ़जाई से बहुत ऊर्जा मिली,,,,,,आपका शुक्र-गुजार हूं,,,,,धन्यवाद,,,,,,,,,
वाह खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय कवि - राज बुन्दॆली जी !!!
ग़ज़ल शिल्प के आधार पर भी बेहतरीन है |
हार्दिक बधाइयाँ |
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