तू मुझमें बहती रही, लिये धरा-नभ-रंग
मैं उन्मादी मूढ़वत, रहा ढूँढता संग
सहज हुआ अद्वैत पल, लहर पाट आबद्ध
एकाकीपन साँझ का, नभ-तन-घन पर मुग्ध
होंठ पुलक जब छू रहे, रतनारे दृग-कोर
उसको उससे ले गयी, हाथ पकड़ कर भोर
अंग-अंग मोती सजल, मेरे तन पुखराज
आभूषण बन छेड़ दें, मिल रुनगुन के साज
संयम त्यागा स्वार्थवश, अब दीखे लाचार
उग्र हुई चेतावनी, बूझ नियति व्यवहार
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--सौरभ
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
अत्यंत उच्चकोटि के सुंदर दोहे रचे हैं आदरणीय आपने! शब्द चयन, भाव, कथ्य, शिल्प के गठजोड़ का अनूठा उदाहरण हैं ये दोहे! आपका बहुत आभार कि आपने इन्हें इस मंच पर हम लोगों से साझा किया।
सादर!
तू मुझमें बहती रही, लिये धरा-नभ-रंग
मैं उन्मादी मूढ़वत, रहा ढूँढता संग
अत्यंत मर्मस्पर्शी दोहावली ......सुन्दर शब्द-चयन ...........आदरणीय सौरभ जी,बहुत -बहुत बधाई !
अहा ! अत्यंत सुन्दर मनोहारी हृदयस्पर्शी दोहे आदरणीय गुरुदेव श्री. ह्रदय से भूरि भूरि बधाई स्वीकारें आदरणीय गुरुदेव श्री.
उत्तम दोहों के लिए, आह कहूँ या वाह ।
पढ़ता बारम्बार हूँ, लेकिन मिटे न चाह ।।
वाह सुन्दर दोहावली
संयम त्यागा स्वार्थवश, अब दीखे लाचार
उग्र हुई चेतावनी, बूझ नियति व्यवहार
तू मुझमें बहती रही, लिये धरा-नभ-रंग...
वाह ..... पहले दोहे की प्रथम पंक्ति ही रस विभोर कर गयी .. तत्पश्चात तो एक एक दोह पढते रहे और आनंद सागर में डुबकियां लगते रहे .. अद्भुत .. प्रत्येक दोहा अपने आप में अनमोल है .. हार्दिक बधाई महोदय !
आदरणीय सौरभ जी,
अंग-अंग मोती सजल, मेरे तन पुखराज
आभूषण बन छेड़ दें, मिल रुनगुन के साज ///////////अद्भुत अद्भुत
वाह वाह आदरणीय सौरभ जी बहुत ही सुन्दर दोहा लिखा है अपने ///प्रणाम सहित हार्दिक बधाई
एक एक दोहा … भावों से भरा हुआ
संयम त्यागा स्वार्थवश, अब दीखे लाचार
उग्र हुई चेतावनी, बूझ नियति व्यवहार … सही कहा आपने आदरणीय, अब नियति को स्वीकारना ही होगा
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.................. |
आदरणीय सौरभ जी! एक- एक पद मणि सम अनमोल ,किसी एक की क्या बात करूँ
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