For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तू  मुझमें  बहती  रही, लिये धरा-नभ-रंग
मैं    उन्मादी   मूढ़वत,   रहा  ढूँढता  संग

सहज हुआ अद्वैत पल,  लहर  पाट  आबद्ध
एकाकीपन साँझ का, नभ-तन-घन पर मुग्ध

होंठ पुलक जब छू रहे,   रतनारे   दृग-कोर
उसको उससे ले गयी,  हाथ पकड़ कर भोर

अंग-अंग  मोती  सजल,  मेरे तन पुखराज
आभूषण बन  छेड़ दें, मिल रुनगुन के साज

संयम त्यागा स्वार्थवश,  अब  दीखे  लाचार
उग्र  हुई  चेतावनी,  बूझ  नियति  व्यवहार

*******************************

--सौरभ

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1921

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on June 24, 2013 at 9:29pm

अत्यंत उच्चकोटि के सुंदर दोहे रचे हैं आदरणीय आपने! शब्द चयन, भाव, कथ्य, शिल्प के गठजोड़ का अनूठा उदाहरण हैं ये दोहे! आपका बहुत आभार कि आपने इन्हें इस मंच पर हम लोगों से साझा किया।
सादर!

Comment by Savitri Rathore on June 24, 2013 at 7:45pm

तू  मुझमें  बहती  रही, लिये धरा-नभ-रंग
मैं    उन्मादी   मूढ़वत,   रहा  ढूँढता  संग
अत्यंत मर्मस्पर्शी दोहावली ......सुन्दर शब्द-चयन ...........आदरणीय सौरभ जी,बहुत -बहुत बधाई !

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 24, 2013 at 10:54am

अहा ! अत्यंत सुन्दर मनोहारी हृदयस्पर्शी दोहे आदरणीय गुरुदेव श्री. ह्रदय से भूरि भूरि बधाई स्वीकारें आदरणीय गुरुदेव श्री.

उत्तम दोहों के लिए, आह कहूँ या वाह ।

पढ़ता बारम्बार हूँ, लेकिन मिटे न चाह ।।

Comment by वीनस केसरी on June 24, 2013 at 9:40am

वाह सुन्दर दोहावली 

संयम त्यागा स्वार्थवश,  अब  दीखे  लाचार

उग्र  हुई  चेतावनी,  बूझ  नियति  व्यवहार


सामयिकता का पुट भी पसंद आया ...
Comment by shalini rastogi on June 23, 2013 at 5:06pm

तू  मुझमें  बहती  रही, लिये धरा-नभ-रंग...

वाह ..... पहले दोहे की प्रथम पंक्ति ही रस विभोर कर गयी .. तत्पश्चात तो एक एक दोह पढते रहे और आनंद सागर में डुबकियां लगते रहे .. अद्भुत .. प्रत्येक दोहा अपने आप में अनमोल है .. हार्दिक बधाई महोदय !

Comment by mrs manjari pandey on June 23, 2013 at 4:22pm

आदरणीय सौरभ जी, 

      आप यूँ ही लिखते रहें रंग भरे नवरंग  
      हम पढ़ के हो जायेंगे आप भरे रस रंग .
Comment by ram shiromani pathak on June 23, 2013 at 12:43pm

अंग-अंग  मोती  सजल,  मेरे तन पुखराज 
आभूषण बन  छेड़ दें, मिल रुनगुन के साज ///////////अद्भुत अद्भुत 

वाह वाह आदरणीय  सौरभ जी बहुत ही  सुन्दर दोहा लिखा है अपने ///प्रणाम सहित हार्दिक बधाई 

Comment by वेदिका on June 22, 2013 at 5:56pm

एक एक दोहा … भावों से भरा हुआ 

संयम त्यागा स्वार्थवश,  अब  दीखे  लाचार
उग्र  हुई  चेतावनी,  बूझ  नियति  व्यवहार … सही कहा आपने आदरणीय, अब नियति को स्वीकारना ही होगा  

Comment by Shyam Narain Verma on June 22, 2013 at 12:41pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ..................

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 22, 2013 at 10:39am

आदरणीय सौरभ जी!   एक- एक पद मणि सम अनमोल ,किसी एक की क्या बात करूँ 

पहले और अंतिम दोहे ने मानव और  नियति के  सारे स्वरुप की गाथा  खोल के रख दी 
नियति हमारे स्वार्थ की कथा ही तो बांच रही है आजकल गिन गिन के हिसाब ले रही है 
इन अनुपम उत्कृष्ट दोहों के लिए आपकी लेखनी को नमन  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service