एक निर्झर नदी सी बहो
खिलखिलाती हुई कुछ कहो
फासले अब नहीं दरमियां
आंच है,उम्र है,गरमियां
अब तो सम्बन्ध हैं इस तरह
जैसे हों झील में मछलियां
थाम लेंगे तुम्हे कूल ये
पास जब और कोई न हो
गम मिले तो हँसे हम बहुत
दर्द से कोई यारी नहीं
पल रहे हैं नयन में सपन
नींद में अब खुमारी नहीं
चांदनी मुस्कुराती लगे
प्यास अब तो न कोई कहो
_______________प्रो. विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ
(मौलिक ,अप्रकाशित )
Comment
बहुत खूबसूरत नवगीत
हर पंक्ति में थिरकन है..माधुर्य है..रवानी है..ज़िंदगी है
प्रथम बंद पर तो मनमुग्ध है..बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए
सादर.
वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर मनोहारी नवगीत रचा है आपने, मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.
बहुत ही सुन्दर नवगीत रचा है आपने! आपको मेरी हार्दिक बधाई!
एक निर्झर नदी सी बहो
खिलखिलाती हुई कुछ कहो
आदरणीय विश्वम्भर जी,
सादर प्रणाम !
आपका नवगीत अत्यंत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी बन पड़ा है ........हार्दिक बधाई !
आदरणीय विश्वम्भर शुक्ल जी, आपके इस नवगीत ने अंतर के कोमल तंतुओं को झंकृत किया है. शिल्प, भाव, शब्द, कथ्य हर कुछ इतना उच्च है कि मैं आपकी इस प्रस्तुति को बार-बार पढ़ रहा हूँ. और मुग्ध हो रहा हूँ.
एक निर्झर नदी सी बहो .. इस एक पंक्ति ने देर तक रोके रखा, क्योंकि खिलखिलाते हुए कुछ कहने का निवेदन लिये आती है यह पंक्ति.
फासले अब नहीं दरमियां
आंच है,उम्र है,गरमियां
अब तो सम्बन्ध हैं इस तरह
जैसे हों झील में मछलियां.. . . ओह्होह ! एक-एक पंक्ति अथाह है. इन्हें यों ही कहा ही नहीं जा सकता.
आपके अपार अनुभवों के सापेक्ष आपकी प्रस्तुति सुगढ़ हुई है. और मेरे अंदर का पाठक संतुष्ट हुआ है.
सादर बधाई, आदरणीय
गम मिले तो हँसे हम बहुत
दर्द से कोई यारी नहीं
पल रहे हैं नयन में सपन
नींद में अब खुमारी नहीं
आपके गीत मे जीवन आदर्श है जो एक बाकिफ उम्र पर प्राप्त हो ता है |
अच्छा सा
गीत ! आभार !
सुंदर गीत …
एक निर्झर नदी सी बहो
खिल खिलाती हुयी कुछ कहो
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online