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खा खाकर मोटी हुई,जैसे मोटी भैंस !
मै दुबला होता गया ,मेरे धन पे ऐश !!

सुबह शाम गाली सुनूँ ,हरदम करती चीट !
धोबी का सोटा उठा ,अक्सर देती पीट !!

मै घर का नौकर बना ,झेलूँ बस उपहास !
रूठ विधाता भी गये,जाऊं किसके पास !!

लगे लंकिनी सा मुझे ,उसका भद्दा फेस !
दिन में कितनी बार वॊ,बदले अपना भेष !!

अब तो देखो हद हुई ,झेलूँ कितनी त्रास
घर आते सुनना पड़ा ,करना है उपवास !!

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2013 at 8:57pm

डॉ.प्राची,  और या साथ में की तुकांतता के प्रति कोई रचनाकार आग्रही है तो यह उस रचनाकार का व्यक्तिगत प्रयास है. और हम इस तरह के हुए प्रयास को सकारात्मक रूप से स्वीकारें. किन्तु, ऐसा तुक विधान कहीं नहीं कहता. या, मेरी दृष्टि से अभी तक नहीं गुजरा है. यदि छंद व्याकरण में तथ्यात्मक रूप से किसी पूर्व स्थापित वैयाकरण ने ऐसा कुछ कहा है तो अवश्य सामने लाया जाना चाहिये. हम सभी लाभान्वित होंगे. इसे छंद विधान के साथ सप्रयास जोड़ना व्यक्तिगत मान्यता को आरोपित करना जैसी बात हो जायेगी. वस्तुतः, उर्दू की ग़ज़ल के लिहाज से इस तरह कोई तुकांतता हिन्दी ग़ज़ल में आयी है तो उसे काफ़िया के निर्धारण तक रहने दें हम.

सादर

Comment by ram shiromani pathak on June 26, 2013 at 7:53pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया प्राची जी प्रणाम///सुधारने  का प्रयास करता हूँ //स्नेह यु ही बनाये रखे //सादर   


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 26, 2013 at 7:46pm

बहुत सुन्दर हास्य दोहे प्रिय राम शिरोमणि जी , बहुत बहुत शुभकामनाएँ 

पहले और चौथे दोहे की तुकांतता पर फिर ध्यान दें.

Comment by ram shiromani pathak on June 26, 2013 at 4:45pm

हार्दिक आभार आदरणीय जवाहरलाल जी //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on June 26, 2013 at 4:44pm

हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी ///स्नेह यूँ ही बनाएं रखें //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on June 26, 2013 at 4:43pm

हार्दिक आभार भाई केवल जी ************


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 26, 2013 at 3:57pm

 हहाहाहा प्रिय राम शिरोमणि यदि तुम राम हो तो सीता ही मिलेगी लंकिनी सी  नहीं मिलेगी मेरी शुभकामनायें तुम्हारे साथ हैं , सच में बहुत मजेदार रोचक दोहे लिखे हैं बधाई आपको । लंकिनी सी लिखिए बाकी दोहे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 26, 2013 at 2:44pm

काका जिनका नाम है, हास्य है जिनकी जान!

हाथरस उनको न भुले, काकी से पहचान!

बधाई हो श्री राम शिरोमणि साहब! मैं भी यह समझ सकता हूँ काका का तो जमाना रहा नही, अब कोई पति भला इतनी हिम्मत कैसे कर सकता है! 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 26, 2013 at 12:59pm
bahut sunder! bhai jee saadar,
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 26, 2013 at 12:44pm
जी, राम भाई सही कह रहें है आप..मैं आपकी बातों से संतुष्ट हूँ 'क्योकि मुझे भी मेरे करीबी लोग बहुत प्यार व स्नेह करते है! तहे दिल से शुभकामनाऐं आपको अच्छा जीवन साथी मिले...." और हम जब किसी का बुरा नहीं सोचते या करते, तो हमारा बुरा हो ही नहीं सकता....." ये सब तो हम भाईयों की हँसी मजाक है.....शेष शुभ

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