होवे हृदयाघात यदि, नाड़ी में अवरोध ।
पर नदियाँ बाँधी गईं, बिना यथोचित शोध ।
बिना यथोचित शोध, इड़ा पिंगला सुषुम्ना ।
रहे त्रिसोता बाँध, होय क्यों जीवन गुम ना ।
अंधाधुंध विकास, खड़ी प्रायश्चित रोवे ।
भौतिक सुख की ललक, तबाही निश्चित होवे ।।
त्रिसोता = गंगा जी
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
बिलकुल सही कहा आपने श्री रविकर भाई,- बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय -
इसका परिणाम देखिये -
मलवे में सब दब गए,उत्तरकाशी गाँव,
हिम पर्वत की गोद में, मिले न कोई छाँव |- लक्ष्मण
बहुत बहुत आभार आदरणीय / आदरणीया-
Bilkul sahi kaha Ravikar Ji aapne....bina soche vichare kahin bandh bandhe ja rahe hain to kahn, dharti khodi ja rahi hai.....parinam- nari mein avrodh to aana hi tha / shubhkamna sachhai bayan karne ke liye/
सच है बिना पेपर वर्क के किसी भी प्रोजेक्ट को क्रियान्वन करना निरी मुर्खता है और तब तो क्या कहिये जब ये मूर्खता मानवता के विनाश में
पूरा पूरा सहयोग करती है :((((((
समझ के बाहर है की जब हम एक छोटी सी चाय की दुकान खोलने के पहले सारे वैरियेब्ल्स का अध्ययन करते है तो इतने बड़े कदम
( जल प्रोजेक्ट) को उठाने के पहले क्यों नही सोचते ????
आपनें बड़ी ही विषाद समस्या को केंद्र बिंदु बनाया आदरणीय रविकर जी!
आपको बहुत बहुत धन्यवाद!!
बहुत ही सुंदर व मर्मस्पर्शी रचना................
अंधाधुंध विकास, खड़ी प्रायश्चित रोवे भौतिक सुख की ललक, तबाही निश्चित होवे ।। सच कहा आपने
sundar...sikchaprad rachna....
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