For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चुप तो बैठे हैं हम मुरव्वत में - वीनस

एक ताज़ा ग़ज़ल ...

चुप तो बैठे हैं हम मुरव्वत में

जाएगी जान क्या शराफत में

 

किसको मालूम था कि ये होगा

खाएँगे चोट यूँ मुहब्बत में

 

पीटते हैं हम अपनी छाती क्यों
क्यों पड़े हैं हम उनकी आदत में

 

खून उगलूँ तो उनको चैन आए

आप पड़िए तो पड़िए हैरत में

 

बेहया हैं, सो साँसें लेते हैं

मर ही जाते तुम ऐसी सूरत में

 

अब नहीं आ रहा उधर से जवाब
लुत्फ़ अब आएगा शिकायत में

नाम उन तक पहुँच गया मेरा

अब तो रक्खा ही क्या है शुहरत में


ख़ाब में भी न सोच सकते थे

लिख के भेजा है उसने जो खत में


मैंने रोका था, ख़ाक माने आप

और पड़िए हमारी सुहबत में

जेह्न से वो नहीं उतरता है

हर घड़ी अब रहूँ इबादत में


ठोकरें खाऊंगा ... बहुत अच्छा !

और क्या क्या लिखा है किस्मत में ?



फाइलातुन मफ़ाइलुन फैलुन 
मौलिक व अप्रकाशित
- वीनस

Views: 1341

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on July 4, 2013 at 10:43pm

बेहया हैं, सो साँसें लेते हैं

मर ही जाते तुम ऐसी सूरत में

 

अब नहीं आ रहा उधर से जवाब
लुत्फ़ अब आएगा शिकायत में

नाम उन तक पहुँच गया मेरा

अब तो रक्खा ही क्या है शुहरत में

नमस्कार वीनस जी .. कुछ अलग ही अंदाज है  इस गजल में ..बिलकुल शहादत वाली.. :))) बहुत -२ बधाई आपको

Comment by coontee mukerji on July 4, 2013 at 6:16pm

शिकायत करने का क्या अंदाज़ है.....दाद कूबूल करें.वीनस जी.

Comment by ram shiromani pathak on July 4, 2013 at 5:41pm

आदरणीय भाई वीनस जी  लगता है आप बुरा मान गए ..मैंने पहले ही क्षमा मांग ली है आपसे //कमेंट डिलीट कर देता हूँ //

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 4, 2013 at 5:40pm

वीनस भाई,

पढ़कर नहीं लगता के आपकी कही ग़ज़ल है. फ़साहत की कमी स्पष्ट नज़र आती है.

रवानी भी नहीं आ रही. ख्याल में दम है. मेरे विचार से कोई अन्य बहर

 लेते तो मज़ा आ जाता.

मैंने बाँधने की कोशिश की है देखें कैसी लगती है--

 

21 2   1222   1222   1222

चुप ही यहाँ बैठे रहें हम बस मुरव्वत में

मेरी जान भी जायेगी ऐसी ही शराफत में

 

सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 4, 2013 at 5:27pm
""किसको मालूम था कि ये होगा
!
खाएँगे चोटयूँ मुहब्बत में""....वाह! बहुत खूब, शानदार शेअर....,""पीटते हैं हम अपनी छाती क्यों

क्यों पड़े हैं हम उनकी आदत में,,

खून उगलूँ तो उनको चैन आए,

आप पड़िए तो पड़िए हैरत में,,......आदरणीय..वीनस जी, ये तो कमाल के शेअर, गजब..वीनस जी, ""मैंने रोका था, ख़ाक माने आप

और पड़िए हमारी सुहबत में,,......वाह! आदरणीय..क्या खूब कह दिया..'मना करने पर भी, न माने....सुहबत कर ली ' "'ठोकरें खाऊं गा ... बहुत अच्छा !

और क्या क्या लिखा है किस्मत में ?....आदरणीय..वीनस जी, सच कमाल की गजल...."दिल की गहराइयों से दाद कुबूल कीजीऐगा
Comment by वीनस केसरी on July 4, 2013 at 5:26pm

राम शिरोमणि भाई,
कोई रचनाकार अपनी रचना पर ऐसी टिप्पणी नहीं चाहता जिसको पढ़ कर उसे समझ न आये कि वो बाल नोचे या छाती पीटे 
खैर अभी आपको ये समझने में वक्त लगने वाला है 

Comment by ram shiromani pathak on July 4, 2013 at 5:01pm

चुप तो बैठे हैं हम मुरव्वत में

जाएगी जान क्या शराफत में////कलयुग चल रहा है भाई वीनस जी 

 

किसको मालूम था कि ये होगा

खाएँगे चोट यूँ मुहब्बत में/////////////मार्केट में  बहुत सारी दवाएं है भाई ///

 

पीटते हैं हम अपनी छाती क्यों 
क्यों पड़े हैं हम उनकी आदत में////भाई ये तो आप ही बता सकते  है/// 

 

खून उगलूँ तो उनको चैन आए

आप पड़िए तो पड़िए हैरत में//////वो क्या खून उगलेगा भाई जिसके शरीर में खून ही न हो ///

 

बेहया हैं, सो साँसें लेते हैं

मर ही जाते तुम ऐसी सूरत में/////भाई और भी आप्शन है ///इत्ती जल्दी मरने की बात ////

 

अब नहीं आ रहा उधर से जवाब 
लुत्फ़ अब आएगा शिकायत में////////हो सकता है भाई कोई टेक्नीकल समस्या हो //

नाम उन तक पहुँच गया मेरा

अब तो रक्खा ही क्या है शुहरत में///////अब क्या कहूँ इसपे बहुत संतोषी है आप ///


ख़ाब में भी न सोच सकते थे

लिख के भेजा है उसने जो खत में///ऐसा क्या लिखा था भाई ///


मैंने रोका था, ख़ाक माने आप
 
और पड़िए हमारी सुहबत में///भाई रुकने वाला आज के ज़माने में पीछे रहा जाता है 

जेह्न से वो नहीं उतरता है

हर घड़ी अब रहूँ इबादत में///***********************


ठोकरें खाऊंगा ... बहुत अच्छा !

और क्या क्या लिखा है किस्मत में ?//////?????हरी ॐ 

आदरणीय  भाई वीनस जी मुझे बहुत ही मज़ा आया और अच्छा लगा ///बहुत बड़ी वाली बधाई आपको /// थोड़ी सी मस्ती की है मैंने यदि बुरा लगे तो माफ कर दीजियेगा ////सादर

Comment by Neeraj Nishchal on July 4, 2013 at 2:52pm

जनाब केसरी जी बात कुछ भी हो पर ग़ज़ल
के बादशाह तो आप ही हो रखे हैं ....

नाम उन तक पहुँच गया मेरा
अब तो रक्खा ही क्या है शोहरत में......
क्या बात कही ...........बहुत खूब

Comment by वेदिका on July 4, 2013 at 1:56pm

नाम उन तक पहुँच गया मेरा

अब तो रक्खा ही क्या है शुहरत में ,,, जानलेवा शेअर वाह :))

दिली दाद कुबुलिये!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2013 at 12:36pm

अय हय हय !..  ये अंदाज़, ये तेवर ? भाई, बढिया है..!!.. :-))))

इस महीनी को क्या कहूँ !  आपने थोड़ा चौंकाया है वीनस भाई. 

यों ही चौंकाते रहिये.

दाद दाद दाद..

इन अश्आर पर तो फिर-फिर आया --

पीटते हैं हम अपनी छाती क्यों
क्यों पड़े हैं हम उनकी आदत में

 

बेहया हैं, सो साँसें लेते हैं
मर ही जाते तुम ऐसी सूरत में

 

अब नहीं आ रहा उधर से जवाब
लुत्फ़ अब आएगा शिकायत में

ग़ज़ब !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
8 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service