कि इश्क सुन तिरे हवाले ताज करते हैं
कि प्यार कल भी था तुझी से आज करते हैं
हुकूमतों का शोख़ रंग यह भी है यारों
कि हम जहाँ नहीं दिलों पे राज करते हैं
बहुत लगाव है हमें वतन की मिटटी से
इसी पे जान दें इसी पे नाज़ करते हैं
नरम दिली नहीं समझते देश के दुश्मन
चलो कि आज हम गरम मिज़ाज करते
मिरे वतन के फौज़ियों सलाम है मेरा
तुझी से मान है तुझी पे नाज़ करते हैं
संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम आपको ''कृपया'' कहने की आवश्यकता नहीं मैं अपने कहे को वापस लेती हूँ।
आदरणीय बृजेश जी का भी मैं सम्मान करती हूँ। मैं सदैव सीखने के लिए ही तत्पर हूँ ,अभी तो आप सभी से मुझे बहुत
कुछ सीखना है। मैं तो चाहती हूँ कि आप सभी मेरा मार्गदर्शन करें ...
सर एक जिज्ञाषा कि जिस प्रकार हम किसी ग़ज़ल में उर्दू शब्द का प्रयोग कर सकते हैं तो क्या तिरे मिरे उर्दू शब्द का प्रयोग
भी किया जा सकता है या नहीं।आपके मार्गदर्शनों हेतु सदाकांक्षी ...
// इसी मंच पर प्रायः लोग उर्दू शब्दों का प्रयोग तो करते हैं पर लिपि का नहीं।//
ऐसे न कहें कृपया, हिन्दी उर्दू का कई बखेड़ा नहीं है, सन्जू जी. यह अवश्य है कि हिन्दी शब्दों को उसी मूल रोप में लिखना उचित होता है. जहाँ बह्र के अनुसार बतने की आवश्यकता होगी, लोग मात्रा को गिरा लेंगे.
भाई बृजेश जी एक अनुभवी और ठोस पाठक हैं. वैसे, पाठक कोई हो यदि वह कुछ सकारात्क कहता है तो उसे सुनना चाहिये. रचनाओं में अन्यथा पर कुछ कहना सुधी पाठकों का हक़ है.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय बृजेश जी आपकी संशोधित टिप्पणी का स्वागत है
आदरणीया कुंती जी सादर प्रणाम एवं सादर आभार ..
आदरणीय बृजेश जी यह मेरा दुर्भाग्य ही है कि आपको मेरी ग़ज़ल में सिर्फ तिरे और मिरे ही दिखाई दिये।
रही बात शब्दों के भद्द पिटने की तो मेरी ऐसी मंशा बिल्कुल नहीं थी। मैंने तो बहर को ध्यान में रखकर तिरे और
मिरे का प्रयोग किया जिससे कि 1 2 ही माना जाय 2 2 नहीं। फिर भी यदि आपको ऐसा प्रतीत हुआ तो मैं क्षमा -प्रार्थी हूँ।
और एक बात ... इसी मंच पर प्रायः लोग उर्दू शब्दों का प्रयोग तो करते हैं पर लिपि का नहीं।
आभार ...................
आपकी रचना के भाव बहुत अच्छे हैं।
हिन्दी में न तो ‘तिरे’ कोई शब्द होता है और न ‘मिरे’। उर्दू में यदि होता है तो बेहतर है कि रचना उर्दू लिपि में ही लिखी जाए।
यहां एक बात स्पष्ट कर दूं कि गजल में ‘मेरे’ के ‘मे’ की मात्रा गिरायी जा सकती है लेकिन हिन्दी भाषा ‘मेरे’ के स्थान पर ‘मिरे’ लिखना स्वीकार नहीं करती।
सादर!
मिरे वतन के फौज़ियों सलाम है मेरा
तुझी से मान है तुझी पे नाज़ करते हैं.... आदरणीया संजू जी बहुत ही अच्छे भाव है आपकी रचना में बहुत-२ बधाई आपको
बहुत सुंदर.मिरे वतन के फौज़ियों सलाम है मेरा
तुझी से मान है तुझी पे नाज़ करते हैं
संजू जी, आपकी इस ग़ज़ल पर आपको बधाई, वतन और फ़ौजियों के नाम ये ग़ज़ल वाकई बेहतरीन बन पढ़ा है
आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम ....आपने बिल्कुल सही समझा ,मैंने मतला सबसे बाद में और सबसे जल्दी लिखा .
मैं भी सोच रही हूँ कि मतला बदल दूँ . आपके सुझाव का आगे से ख्याल रखूँगी .मेरे भाव शब्द आप तक पहुँचे ,ग़ज़ल सार्थक
हुई .मार्गदर्शन हेतु आपका ह्रदय से बहुत -बहुत -बहुत ........आभार
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