घास का इक नर्म
बिछौना बनाकर
ओढ़ कर नीले
गगन की सर्द चादर
सोया है कोई …
ओस बिखरी है जो
हरी हरी घास पर
साँस भर भर आई
हर साँस पर
रोया है कोई ….
कहीं पुरवाइयों में
ओस की रुलाइयों में
चूड़ियों सा चटका है
टूटा, मेरी कलाईयों में
बिखरा है कोई …
गर्म लहू जमा वह
या ठंडी बरसात है
कुहासे का झाग
या तो चीख की आग
भिगोया है कोई …
कत्थई निगाहें दौड़ी
कितने सफेद कोस
दर्द धूप में उड़ी,नर्म
आसुंओं की ओस
खोया है कोई ….
गीतिका 'वेदिका'
मौलिक /अप्रकाशित
Comment
आदरणीया वेदिका जी,अतिसुन्दर प्रस्तुति।बधाई स्वीकारें //सादर
बहुत ही शानदार लेखन । अंतिम चार पंक्तियां अत्यधिक खूबसूरत हैं
कत्थई निगाहें दौड़ी
कितने सफेद कोस
दर्द धूप में उड़ी,नर्म
आसुंओं की ओस
खोया है कोई ….
आपको ढेरों बधाई इस रचना पर
बहुत ही सुंदर नवगीत , बार बार पढ़्ने को दिल चाहे.
सादर
कुंती
आदरणीय शिज्जू जी!
आपकी सलाह का बहुत बहुत शुक्रिया, अपने गजल लिखने के लिए प्रेरित किया, मेरे लिए बहुत सम्मान की बात है।
ख्यालात जरुर ही मै गजल के शिल्प में ढालूँगी!
प्रोत्साहन औए स्नेह यूँ ही बनाये रखिये!!
आदरनीय केवल भाई जी!
आदरणीय शौर्य जी!
बहुत बहुत आभार, रचना कर्म को प्रोत्साहित करने हेतु!!
आदरणीया महिमा जी!
आभार आपका आपने रचना पर कृपा दृष्टी की
//यंहां अगर साँस की जगह पे आँख लिखा जाए तो कैसा रहे..
ओस बिखरी है जो
हरी हरी घास पर
आँख भर भर आई
हर साँस पर
रोया है कोई// ,,, निश्चित ही आपका सुझाव सराहनीय है।
किन्तु यहाँ मेरे कहने का उद्देश्य
"साँस भर भर आई
हरसाँस पर ",,,,, किन्तु यहाँ मेरे कहने का उद्देश्य है हरसाँस पर साँस भरने की अतिश्योक्ति से है, हरसाँस एक आंचलिक और प्रचलित शब्द है!
आशा है मै अपनी बात रखने में सफल रही
स्नेह बनाये रखे!!
वेदिका जी यहाँ आपकी आँखें किसी और के लिए अश्क बहा रही हैं, आपकी भावनाएँ दिल को छू गयीं बेहतरीन रचना,
मैं आपको वो चीज़ दे रहा हूँ जो अपने देश में सुलभ है वो है बिन माँगी सलाह, वो ये की इसी विषय पर आप एक ग़ज़ल लिखिए बाखुदा वो भी मर्मस्पर्शी बनेगा.
बहुत बढ़िया ,बधाई स्वीकारें। सादर,
आ0 वेदिका जी, अतिसुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति। तहेदिल से बधाई स्वीकारें। सादर,
आदरणीया वेदिका जी ..बहुत बढ़िया .. दर्द के एहसास को जीता नवगीत ... बहुत-२ बधाई
ओस बिखरी है जो
हरी हरी घास पर
साँस भर भर आई
हर साँस पर
रोया है कोई
यंहां अगर साँस की जगह पे आँख लिखा जाए तो कैसा रहे..
ओस बिखरी है जो
हरी हरी घास पर
आँख भर भर आई
हर साँस पर
रोया है कोई
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