जीव-प्रकृति से प्यार करें,
बनकर धरा हितेश!
पहाड़ों की शिखाओं पर
हरियाली से केश
कुछ घुंघराले
कुछ लट वाले
कुछ तने-तने रेश।1
बहे पवन पुरवाई या
पछुवा चले बयार
इठलाती औ
बलखाती ज्यों
झूमें मस्त दिनेश।2
गूंजें वन में कलरव धुन
ठुमरी औ मल्हार
नृत्य उर्वशी
रम्भा करती
किरने अर्जुन वेश।3
तितली-भौरें-पाखी-जन
करें सुमन से नेह
चूम-चूम तन
कण पराग मन
मिटे तमस औ क्लेश।4
के0पी0सत्यम/ मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
प्राकृतिक सौंदर्यता के मनोहारी द्रष्यों का सुन्दर वर्णन से मन हर्षित होता है, ऐसे सुंदर रचना हेतु बधाई श्री केवल प्रसाद जी
तितली-भौरें-पाखी-जन
करें सुमन से नेह
चूम-चूम तन
कण पराग मन
मिटे तमस औ क्लेश।4////////सुन्दरतम
वाह भाई केवल जी बहुत ही सुन्दर गीत//हार्दिक बधाई आपको
वाह-वाह मित्रवर ये हुई ना बात । ये नवगीत तो मन को झुमा गया, ढेरों बधाईयां आपको
प्रकृति का मनवीकरण रूप में बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.केवल प्रसाद जी दिन प्रति दिन आप की रचना में निखर आ रही है.
सादर
कुंती.
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