जीवन में हर रंग दिखाता ये पल्लू
सर पर तो पूरित हो जाता है पल्लू
गर्मी में चेहरे का पसीना पौंछता
सावन में छतरी बन जाता है पल्लू
जब- तब शादी में गठबंधन करवाता
दो जीवन को एक बनाता ये पल्लू
झोली बन कर आखत अर्पण करवाता
फिर घूँघट की शान बढाता है पल्लू
कभी कभी नव शिशु का झूला बन जाता
आँखों से तिनका चुन लेता ये पल्लू
रोता बालक माँ के पीछे जब दौड़े
हाथो की ऊँगली बन जाता है पल्लू
सर ढके जग में संस्कारी कहलाता
ढल गया तो कहर बरपाता ये पल्लू
छन छन् छन् छन घर की कुंजी छनकाता
आये आँसू आँख पौंछता है पल्लू
चाहत में प्रेमी का साहिल बन जाता
झगड़े में फंदा बन जाता ये पल्लू
भार उठाने सर की टिकड़ी भी बनता
धोबिन का हंटर बन जाता है पल्लू
स्वदेशी प्राचीन संस्कृति का द्योतक
पुरखों की थाती का मानक ये पल्लू
जाने अब दुनिया में कैसी हवा बही
उड़ा ले गई मरी सिरों से वो पल्लू
जीवन में हर रंग दिखाता ये पल्लू
सर पर तो पूरित हो जाता है पल्लू
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
प्रिय नूतन जी रचना पर आपकी सराहना मिली लेखन सफल हुआ |
पल्लू के विभिन्न पहलुवों को दर्शाती ... यह नायाब रचना है ... आपको स्नेह और आदर के साथ प्रिय मित्र राजेश जी ...
आदरणीय डी पी माथुर जी रचना के भाव को सराहा रचना सफल हुई हार्दिक आभार आपका
जीवन में हर रंग दिखाता ये पल्लू
सर पर तो पूरित हो जाता है पल्लू
आदरणीया राजेश कुमारी जी , पल्लू को बहुत ही सकारात्मक ढ़ंग से परिभाषित किया है आपने सुन्दर प्रस्तुति की बधाई !
किशन कुमार जी आपको यह रचना पसंद आई बहुत बहुत आभार आपका
राम शिरोमणि पाठक जी आपको यह रचना पसंद आई हार्दिक आभार
नीरज मिश्रा जी आपको यह रचना पसंद आई हार्दिक आभार |
आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत सुन्दर रचना //हार्दिक बधाई
अप्रतीम रचना आदरणीया राजेश कुमारी जी ।
आदरणीय विजय जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया लेखन को सार्थक बना रही है हार्दिक आभार
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