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लघु कथा : दर्द (गणेश जी बागी)

ज फिर किसी ने पारस को चाकू मार दिया था, उसकी किस्मत अच्छी थी कि घाव बेहद मामूली था.  डाक्टर बाबू देखते ही पारस को पहचान गये, क्योंकि कोई आठ दस महीने पहले की ही तो बात है जब पारस के घर मे डकैती हुई थी और बदमाशों ने पारस के शरीर पर चाकू से अनगिन वार किये थे, तब इलाज के लिए उसे इसी डाक्टर के पास लाया गया था, गंभीर रूप से ज़ख़्मी होने के बावजूद भी इस बहादुर नौजवान के मुँह से उफ़ तक नहीं निकली थी, लेकिन इस बार अत्यधिक दर्द से रोता बिलखता देख डाक्टर साहब को बहुत आश्चर्य हो रहा था, अत; उन्होंने पूछ ही लिया :

"अरे पारस इतना तो तुम पिछली बार भी नही रोये चिल्लाए थे जितना अब रो रहे हो, जबकि इस बार तो घाव भी मामूली सा है,

"डाक्टर साहब ! पिछली बार कुछ अजनबी बदमाशों ने मुझ पर वार किया था जिन्हे मैं जानता तक नही, पर इसबार वार करने वाला मेरा ............"

"मौलिक व अप्रकाशित"

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 16, 2013 at 9:25pm

सही बात, आदरणीया वेदिका जी, 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 16, 2013 at 9:24pm

जी , वीनस जी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 16, 2013 at 9:23pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय नीरज मिश्रा जी । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 16, 2013 at 9:16pm

सराहना हेतु आभार आदरणीया वंदना जी । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 16, 2013 at 7:41pm

जिन्दगी में सहते रहे वार कभी उफ्फ ना निकला 

इस बार तो जमीं खींचने वाला अपना ही निकला 

 आदरणीय गणेश जी बहुत गहरे चोट करती हुई इस लघु कथा के लिए दिल से बधाई

Comment by बृजेश नीरज on July 16, 2013 at 5:51pm

गजब! बहुत ही सुन्दर! आदरणीय बागी जी हार्दिक बधाई!

Comment by रविकर on July 16, 2013 at 3:51pm

गजब आदरणीय-
सादर

सिसकारे बिन सह गया, सत्तर सकल निशान |
उन घावों को था दिया, हमलावर अनजान |
हमलावर अनजान, किन्तु यह घाव भयंकर |
एक अकेला घाव, दिया अपनों ने मिलकर |
प्राणान्तक यह घाव, खाय कर रविकर हारे |
अन्तर दिखता साफ़, आज अन्तर सिसकारे ||

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 16, 2013 at 2:27pm

बहुत खूब बागी जी। दाद कुबूल करें।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 16, 2013 at 1:58pm

आदरणीय गणेश जी बागी
अपनों के द्वारा दिया हुआ छोटा सा घाव, गैरों के द्वारा दिए हुए बड़े से बड़े घाव से भी ज्यादा दुःख व पीड़ा प्रदान करता है 
भावनात्मक लघुकथा प्रस्तुती पर तहे दिल से बधाइयाँ

Comment by वेदिका on July 16, 2013 at 1:03pm

अपनों का दिया दर्द बहुत गहरे वार करता है .....:(((((

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