आज फिर किसी ने पारस को चाकू मार दिया था, उसकी किस्मत अच्छी थी कि घाव बेहद मामूली था. डाक्टर बाबू देखते ही पारस को पहचान गये, क्योंकि कोई आठ दस महीने पहले की ही तो बात है जब पारस के घर मे डकैती हुई थी और बदमाशों ने पारस के शरीर पर चाकू से अनगिनत वार किये थे, तब इलाज के लिए उसे इसी डाक्टर के पास लाया गया था, गंभीर रूप से ज़ख़्मी होने के बावजूद भी इस बहादुर नौजवान के मुँह से उफ़ तक नहीं निकली थी, लेकिन इस बार अत्यधिक दर्द से रोता बिलखता देख डाक्टर साहब को बहुत आश्चर्य हो रहा था, अत; उन्होंने पूछ ही लिया :
"डाक्टर साहब ! पिछली बार कुछ अजनबी बदमाशों ने मुझ पर वार किया था जिन्हे मैं जानता तक नही, पर इसबार वार करने वाला मेरा ............"
"मौलिक व अप्रकाशित"
पिछला पोस्ट => मर्द
Comment
सही बात, आदरणीया वेदिका जी,
जी , वीनस जी
बहुत बहुत आभार आदरणीय नीरज मिश्रा जी ।
सराहना हेतु आभार आदरणीया वंदना जी ।
जिन्दगी में सहते रहे वार कभी उफ्फ ना निकला
आदरणीय गणेश जी बहुत गहरे चोट करती हुई इस लघु कथा के लिए दिल से बधाई
गजब! बहुत ही सुन्दर! आदरणीय बागी जी हार्दिक बधाई!
गजब आदरणीय-
सादर
सिसकारे बिन सह गया, सत्तर सकल निशान |
उन घावों को था दिया, हमलावर अनजान |
हमलावर अनजान, किन्तु यह घाव भयंकर |
एक अकेला घाव, दिया अपनों ने मिलकर |
प्राणान्तक यह घाव, खाय कर रविकर हारे |
अन्तर दिखता साफ़, आज अन्तर सिसकारे ||
बहुत खूब बागी जी। दाद कुबूल करें।
आदरणीय गणेश जी बागी
अपनों के द्वारा दिया हुआ छोटा सा घाव, गैरों के द्वारा दिए हुए बड़े से बड़े घाव से भी ज्यादा दुःख व पीड़ा प्रदान करता है
भावनात्मक लघुकथा प्रस्तुती पर तहे दिल से बधाइयाँ
अपनों का दिया दर्द बहुत गहरे वार करता है .....:(((((
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