सितारों जड़ी चुनरी नित-निश
लहर दिशा महके री।
झांक रही केसर
मुख नारी,
पर्वत ओट लिए
दृग कारी।
काजल रेख दूर
तक पारी,
गाल गुलाल
मुस्कान प्यारी।
अधर बीच बिजली री !
स्वर्ण किरन ने
ली अंगड़ाई,
शबनम करती
चली रूषाई।
कल कल धुन सुन
सरिता मचले,
गिरि से गिर कर
झरना उछले।
बांह बॅधें नहि मछरी !
पानी में केसर
मुख धोए,
हर हर गंगे
बोल सुहाए।
निखरा रूप
सलोना सुन्दर,
जल रक्त वर्ण
आग लगाए।
चिडि़यां चहकी वन री!।
कमल-सरोवर
जन मन भाए,
जल पर पत्ते
धानी छाए।
भ्रमर प्रेम का
राग सुनाए,
मोर मचल कर
नाच दिखाए।
भोर बड़ी चंचल री!।
के0पी0सत्यम/ मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ0 राजेश भाई जी, आपका स्नेह व सराहना पा कर मुझे बेहद संतुष्टि मिली। उत्साहवर्धन करने हेतु आपका तहेदिल से बहुत बहुत आभार। सादर,
आ0 निकोर सर जी, आपके स्नेह व उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से बहुत बहुत आभार। सादर,
मधुरम-मधुरम
बहुत सुंदर भाव हैं, आदरणीय।
सादर,
विजय निकोर
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