मेरी पाती
मेरे नन्हे नन्हे पाँव,
पगडंडियों पर लम्बी दौड़,
पलकों में तिरती सुनहरी तितली,
फूलझड़ी से सपने -
सखी ! आज मैं उन सपनों को
मैके के झरोखों में टाँक आयी हूँ.
नभ का विस्तार,
धरती अम्बर का मिलन,
झिलमिल तारे पुँज,
सब मुझे लुभाते -
सखी ! मैं सितारों की चुनरी ओढ़
बाबुल का आकाश छोड़ आयी हूँ.
समुद्र की उत्ताल तरंगें,
रेत पर खींची लकीरें,
मेरे चुने हुए रंगीन सीपों का झुरमुट -
सखी ! कह दो लहरों से,
ये खज़ाने मैं तटों पर छोड़ आयी हूँ.
नीली आँखों वाली मेरी चीनी गुड़िया,
सिक्कों से भरा बंद गुल्लक,
परिकथा की चंद किताबें -
सखी ! मेरी वह अमूल्य धरोहर
बिछुड़े हुए बचपन को सौंप आयी हूँ.
गुलमोहर सुर्ख होकर खिलेगी,
अमलतास कनक कुण्डल पहन झूमेगी,
जकरण्डा बेंगनी वसन पर इतराएगी,
पूछेंगी वे सब मेरा पता,
करेंगी अभिमान,
कुछ ज़मीन पर बिछ जाएँगी -
सखी! उन्हें मेरी पाती पढ़कर सुना देना
लहरों के तख्तों पर जो मैं लिख आयी हूँ.
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
कुन्ती दीदी आपकी रचना सदाशय ह्रदय की पूरक है ///ऐसा प्रतीत हुआ जैसे भाव प्रवर्षण हो रहा हो //हार्दिक बधाई आपको
आप कुछ ऐसा छोड़ आई है हर जगह जो आपको याद करते रहेंगे, और आपको भी यदा कदा वो लम्हे आँखों के सामने
आकर उन स्म्रतियों में खो जाने को विवश करेंगे | फिर पाती में सब कुछ तो समाहित है ही जो सनद रहेगी | बहुत
सुन्दर भाव लिए रचना के लिए बधाई आदरणीया कुंती मुखर्जी
आदरणीया कुंती जी आपकी सुंदर प्रेम मे पगी रचना ने सचमुच बचपन की रंगीन गलियों मे पंहुचा दिया , ऐसा अक्सर होता है हम से जो चीज छूट जाती है वही सबसे ज्यादा हमे लुभाती है ।
आदरणीय विजय जी , आपको यह रचना पसंद आयी ,बहुत बहुत धन्यवाद. हाँ, गौर करने से पता चला कि झुरमुट से बेहतर शब्द 'ढेर'
ही होगा. आपके सुझाव के लिये एकबार फिर से धन्यवाद.
आदरणीय सौरभ जी, यह ग़लती मुझसे हुई है क्योंकि रचना भेजने से पहले कुंती जी ने मुझे दिखाया था...मुझे ही संशोधन कर देना चाहिये था. निश्चित रूप से अमलतास और गुलमोहर पुल्लिंग शब्द हैं और शायद जकारण्डा भी. आगे कहीं भेजने से इन पहले पंक्तियों में आवश्यक सुधार कर लिया जायेगा. आपकी सचेत टिप्पणी और सकारात्मक सुझाव के लिये हार्दिक आभार. सादर.
आपकी भावप्रवण रचना के लिए साधुवाद आदरणीया कुन्तीजी..
जीवन में जो कुछ गुजर जाता है वो भी किस शिद्दत से अपना अहसास कराता है इसकी अत्यंत कोमल अभिव्यक्ति है यह रचना.
हृदय से बधाई स्वीकार करें, आदरणीया.
सादर
एक बात :
गुलमोहर या अमलतास को पुल्लिंग संज्ञा दिये जाने की मान्यता है.
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
सखी ! मैं सितारों की चुनरी ओढ़
बाबुल का आकाश छोड़ आयी हूँ.
विवहा उपरांत एक नारी क्या क्या यादे लेकर आती है नये परिवेश मे ,
बड़ी भाबुक और दिल पर लगने बाली प्रस्तुति !
आभार
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