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मेरी पाती
मेरे नन्हे नन्हे पाँव,
पगडंडियों पर लम्बी दौड़,
पलकों में तिरती सुनहरी तितली,
फूलझड़ी से सपने -
सखी ! आज मैं उन सपनों को
मैके के झरोखों में टाँक आयी हूँ.

नभ का विस्तार,
धरती अम्बर का मिलन,
झिलमिल तारे पुँज,
सब मुझे लुभाते -
सखी ! मैं सितारों की चुनरी ओढ़
बाबुल का आकाश छोड़ आयी हूँ.

समुद्र की उत्ताल तरंगें,
रेत पर खींची लकीरें,
मेरे चुने हुए रंगीन सीपों का झुरमुट -
सखी ! कह दो लहरों से,
ये खज़ाने मैं तटों पर छोड़ आयी हूँ.

नीली आँखों वाली मेरी चीनी गुड़िया,
सिक्कों से भरा बंद गुल्लक,
परिकथा की चंद किताबें -
सखी ! मेरी वह अमूल्य धरोहर
बिछुड़े हुए बचपन को सौंप आयी हूँ.

गुलमोहर सुर्ख होकर खिलेगी,
अमलतास कनक कुण्डल पहन झूमेगी,
जकरण्डा बेंगनी वसन पर इतराएगी,
पूछेंगी वे सब मेरा पता,
करेंगी अभिमान,
कुछ ज़मीन पर बिछ जाएँगी -
सखी! उन्हें मेरी पाती पढ़कर सुना देना
लहरों के तख्तों पर जो मैं लिख आयी हूँ.
(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on July 22, 2013 at 10:45pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, प्राची जी, भाई केवल प्रसाद व बृजेश जी, कुंती अभिभूत है आप लोगों की प्रतिक्रिया से. उसकी ओर से मैं आभार व्यक्त करता हूँ. साथ ही आदरणीय जवाहर जी का भी हार्दिक आभार.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 22, 2013 at 9:39pm

बहुत ही सुन्दर भाव और शब्द समन्वय!

Comment by coontee mukerji on July 22, 2013 at 9:39pm

आप सभी ने मेरी रचना को इतना मान दिया , तहे दिल से आभार व्यक्त करती हूँ.

Comment by बृजेश नीरज on July 22, 2013 at 8:17pm

आदरणीया कुन्ती जी आपकी यह रचना पढ़ते पढ़ते सहगल से लेकर लता तक कितने गीत और लोकगीत कानों में गूंज गए। मैंने आज तक मायके की यादों को समर्पित इतना सुन्दर अतुकान्त पहले नहीं देखा।
कुछ कहने को है नहीं बस पढ़ रहा हूं बार बार।
आपको नमन!
सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 22, 2013 at 8:06pm

आदरणीया कुंती जी 

बहुत सुन्दर , कोमल भावों की प्रस्तुति 

सखी ! आज मैं उन सपनों को 
मैके के झरोखों में टाँक आयी हूँ..........वाह! दिल तक पहुँच रहें हैं ये शब्द 

नीली आँखों वाली मेरी चीनी गुड़िया,
सिक्कों से भरा बंद गुल्लक, 
परिकथा की चंद किताबें -
सखी ! मेरी वह अमूल्य धरोहर
बिछुड़े हुए बचपन को सौंप आयी हूँ......सहज सरल शब्द और दिल से जुड़े अनमोल भाव..

बहुत बहुत बधाई आदरणीया 

सादर.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 22, 2013 at 7:23pm

आ0 कुन्ती मैम जी,   वाह! वाह!  लाजवाब अद्भुत!  अप्रतिम सुन्दर प्रस्तुति।  हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 22, 2013 at 11:05am

समुद्र की उत्ताल तरंगें,
रेत पर खींची लकीरें,
मेरे चुने हुए रंगीन सीपों का झुरमुट -
सखी ! कह दो लहरों से, 
ये खज़ाने मैं तटों पर छोड़ आयी हूँ.----दिल तक पंहुच गई आपकी ये रचना क्या कहूँ शब्द ही नहीं मिल रहे एक अवर्णनीय अहसास से गुजर रही हूँ बधाई बधाई इस अप्रतिम रचना के लिए आदरणीय कुंती जी 

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