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आपकी बधाई मेरा हौसला बढाने वाली है आदरणीय श्री अरुण अनंत जी बहुत आभार आपका .
बहुत आभार आदरणीय श्री वीनस जी ...आपकी सीख और कक्षाओं से जो कुछ भी बन पड रहा है वह प्रस्तुत है ..आपका स्नेह बना रहे यही कामना है .
मुकम्मल ग़ज़ल शानदार ... सामयिकता को बखूबी बांधा है यही आपकी विशेषता भी है ,
वैसे इस ग़ज़ल में सामयिकता सर्वकालिक हो जाए तो आनंद दोगुना हो जाए
वाह भाई जी वाह कुछ अधिक कहने के लिए नहीं है हृदय से ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें. आनंद आ गया ह्रदय तृप्त हो गया.
Soch nhi paa rahaa hun kis kis line ki tareef karun sab ek badhkar ek hain
उन फिराकों साहिरों फैजों ने हमको सीख दी ,
एक शाइर शाइरी करता ज़माने के लिए ।
वाह भाई वाह
ये गुलों की बेरुखी है या दवाओं का असर ,
तितलियाँ आती नहीं मकरंद पाने के लिए ।
फोन ने इंसान को दे दीं हजारों मोहलतें ,
एक मैसेज कर दिया रिश्ता मिटाने के लिए ।
YE MERE SATH HO CHUKAA HAI SIR JI UMDA KHAYAL AAPKA BADHAI
पर्वतों ने आदमी को घर बनाता देखकर,
बादलों को दे दिया ठेका भगाने के लिए ।................वाह क्या बात कही
ये गुलों की बेरुखी है या दवाओं का असर ,
तितलियाँ आती नहीं मकरंद पाने के लिए.............ये दवाइयों का ही असर है.
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आदरणीय अरुण जी
हर शेर नें बाँध लिया... वाह !
इसे कहते हैं ऐसी गज़ल जो पाठक हृदय को संतृप्त कर दे...और क्या कहूँ तारीफ़ में..ऐसी लेखनी की ताकत पर हृदय नत होता है.
बहुत बहुत बधाई
सादर.
बेहतरीन ..हर शेर उम्दा ..आपकी ग़ज़ल चेतावनी दे रही इशारा कर रही है कोई फिर भी न समझे तो क्या किया जाए ..सार्थक रचना सादर बधाई के साथ
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