(1)
औक़ात
भोर की दहलीज पर बैठा मैं,
ललचायी इच्छाएँ लेकर,
पर्वत निहार रहा था –
उनके शरीर से लुढ़क कर
वादियों में फैलती,
प्रभात की पहली किरण ने,
मुझे,
मेरी औक़ात बता दी.
(2)
दिन के झरोखे में बैठे
एक लम्बी सांस खींचे,
मैंने सूरज बनने की ठानी –
तैरते हुए बादल के
एक छोटे से टुकड़े की
छोटी सी छाँव ने,
मुझे,
मेरी औक़ात सिखा दी.
(3)
गोधूलि के धुँधलके में छिपकर
मैंने,
आकाश की लालिमा बनना चाहा –
क्षितिज से उमड़ते अंधकार ने
मुझे,
मेरी औक़ात दिखा दी.
(4)
रात्रि के नि:शब्द कोलाहल से त्रस्त
मैंने,
मुखर आकाश को टटोलना चाहा –
नक्षत्र पुंजों से टूटकर,
गिरते हुए एक तारे ने,
मुझे,
मेरी औक़ात सुना दी.
(5)
समय की धार पर,
अंधेरे का आंचल पकड़े
मैं बैठा रहा.
बैठा रहा मैं,
अपनी इच्छाओं का दीप जलाकर –
अडिग, अचंचल;
प्राची में उगती
स्वर्णिम छटा के मधुर स्पर्श ने
मुझको,
एक नयी औक़ात दिला दी.
(मौलिक एवम अप्रकाशित रचना)
Comment
आदरणीय सौरभ जी, ऐसी टिप्पणी मिले तो एक साधारण सी रचना को भी अपना आकाश मिल जाता है,और उसके रचनाकार को फड़फड़ाते हुए कुछ अबोध पर....जिनके सहारे वह अपनी क्षणिक उड़ान जारी रखने का दम्भ दिखा सकता है. इस प्रश्रय के लिये निरंकुश आभार.
आदरणीया प्राची जी, आपके उदार भावनाओं ने मुझे क़लम नहीं त्यागने का एक और बहाना पकड़ा दिया है. इसी तरह मुझे प्रोत्साहित करती रहें. हार्दिक आभार.
क्षमता का तात्पर्य किसी की नैसर्गिक ही, किन्तु, आधिकारिक घोषणा है कि वह सबल है. परन्तु सबल होने का यह गर्वीला भाव कितना सापेक्ष हुआ करता है, इसका सुन्दर प्रस्तुतीकरण आपके पाँचों भाव-चित्र में हुआ है. आधिकारिक होने का गर्व जब दायित्व-निर्वहन का साधन बन जाये तो उस दशा को कितने अपनत्व के साथ पाँचवाँ भाव-चित्र साझा करता है. वाह !
आदरणीय शरदिन्दुजी, आपकी इस रचना-समुच्चय के लिए मैं आपको सादर बधाइयाँ दे रहा हूँ.
शुभ-शुभ
प्रकृति में व्याप्त खूबसूरत बिम्बों के माध्यम से यह बताने का प्रयास कि ''लक्ष्य की ओर बढने पर हज़ारों बार निराशाजनक असफलताएं राह में मिलती है पर अडिग हो घोर अन्धकार में भी आशाओं का दीप जलाए रखने पर, अपनी इच्छा पर कृत संकल्पित रहने पर, जीत जी किरणें लिए प्रात भी अवश्य ही होती है...
हार्दिक बधाई इस सुन्दर सोच को शब्द देने के लिए
सादर.
आदरणीया गीतिका जी व मीना जी, आपने मेरी रचना पसंद की...हार्दिक आभार.
प्रिय जीतेंद्र जी, बहुत बहुत धन्यवाद.
आदरणीय शरदेन्दु जी , सुंदर रचना पर बधाई ...
इतनी सुन्दर रचना की लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय शरदेंदु जी
खूबसूरत रचना के लिए बधाई स्वीकारिये आदरणीय शरदेन्दु जी!
आदरणीय किशन कुमार एवं श्याम नारायण वर्मा जी, आपने मेरी रचना पसंद की....हार्दिक आभार.
भाई बृजेश जी, आपसे प्राप्त प्रशंसा के शब्द मेरे लिये अनमोल हैं. इंसान को अपनी क्षमता पर भरपूर विश्वास होना चाहिये....इसी संदेश को संप्रेषित करने का प्रयास है रचना की अंतिम पंक्तियों में. आपने इस मूल वक्तव्य को अपनी टिप्पणी में सुंदर ढंग से उजागर किया है (//मानव की तुच्छता से लेकर संभावनाओं तक का एहसास कराया है//) हार्दिक आभार. सादर.
आदरणीया अन्नपूर्णा जी, आपकी प्रतिक्रिया से बड़ा संतोष मिला. मान देने के लिये आभार. सादर
आदरणीय शारदेन्दु मुखर्जी जी इतनी अनुपम रचना के लिए हार्दिक बधाई , बहुत ही सही पंक्तियाँ लिखी हैं ।
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