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तुम स्त्री हो ...

सावधान रहो

सतर्क रहो

किस किस से

कब कब

कहाँ कहाँ

हमेशा रहो

हरदम रहो

जागते हुए भी

सोते हुए भी

क्या कहा ?

ख्वाब देखती हो

किसने कहा था

बंद करो

कल्पना की कूची से

आसमान में रंग भरना

उड़ना चाहती हो ?

क़तर डालो पंखो को

अभी के अभी

ओफ्फ तुम मुस्कुराती हो

अरे तुम तो खिलखिलाती भी हो

बंद करो आँखों में

काजल भरना और

हिरणी सी कुलाचे भर

भवरों संग गुंजन करना

यही तो दोष तुम्हारा  है

शोक गीत गाओ

भूल गयी

तुम स्त्री हो !

किसी भी उम्र की हो

क्या फर्क पड़ता है

आदम की भूख

उम्र नहीं देखती

ना ही  देखती है

देश धर्म औ जात

बस सूंघती है

मादा गंध

 

 मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1071

Comment

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Comment by राजेश 'मृदु' on August 12, 2013 at 4:27pm

आपकी लेखनी यूं ही दिन पर दिन सशक्‍त होती जाए, ईश्‍वर से यही कामना है

Comment by MAHIMA SHREE on August 12, 2013 at 3:11pm

आदरणीय सौरभ सर.। आपकी उपस्थिति अपेक्षित थी। .:))

//आपकी इस रचना को आपका मील-पत्थर समझ रहा हूँ.//

सर आपने ऐसा कहा। मैं चकित भी हूँ और ख़ुशी भी मह्सुश कर रही हूँ। . मैं पोस्ट करने से पहले सशंकित थी पता नही.. कैसी प्रतिक्रिया मिले। पर आप की टिपण्णी ने राहत के साथ साथ अतुलनीय उत्साहवर्धन का काम किया और रचना कर्म को संतुष्टि मिली ।

जी आदरणीय भविष्य में ध्यान रखूंगी कि अतुकांत लिखते समय प्रवाह और सम्प्रेषण सही हो सिर्फ शाब्दिकता ना हो।
आदरणीय आपका ह्रदय तल से आभारी हूँ। .स्नेह बनाए रखे। .सादर

Comment by MAHIMA SHREE on August 12, 2013 at 2:57pm

//ये सर्वभोमिक सत्य तो नही है पर असत्य भी नही ,
सब पर लागु नही पर किस पर लागु हो जाये कहा भी नही जा सकता.//
आदरणीय अमन जी। . सही कहा आपने। य़े सभी पे लागु नहीं होता। य़े मानसिक रूप से पीड़ित समाज रहने वाले उन लोगो के लिए है है जो गाहे बगाहे एसा करते या सोचते है। . सादर आपकी आभारी हूँ आपने अपने विचार रखे समय दिया। .सहयोग बनाये रखे

Comment by MAHIMA SHREE on August 12, 2013 at 2:52pm

आदरणीय श्याम जुनेजा जी। . सादर नमस्कार
आदरणीय आपने रचना को समय दिया और उसे एक नए तरके से प्रेषित कर सम्प्रेषण को निखारा , मार्गदर्शन दिया उसके लिए ह्रदय तल से आभारी हूँ आदरणीय आशा है भविष्य में भी आपका बहुमूल्य मार्गदर्शन मिलता रहेगा। . सादर धन्यवाद /

Comment by MAHIMA SHREE on August 12, 2013 at 2:45pm

आदरणीय विजय सर आपने शब्दों से मुझे उत्साह मिला। . रचना कर्म को प्रोत्साहन। . आपकी ह्रदय से आभारी हूँ। . स्नेह बनाये रखे /सादर

Comment by MAHIMA SHREE on August 12, 2013 at 2:43pm

//अलग तरह की कविता है, एक व्यथा है, एक संकेत, एक सच और एक दुःख..//
आदरणीय आशीष जी। .आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया ने मुझे संबल दिया की जो भाव रचना में थे वो प्रेषित हुए.लिखना सफल रहा आपका हार्दिक बधाई /सहयोग बनाए रखे

Comment by MAHIMA SHREE on August 12, 2013 at 2:39pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी , आदरणीया मीना पाठक जी , आदरणीय अमन जी , आदरणीय बसन्त नेमा जी। . . आप सब ने रचना को समय दिया , सराहा अपने विचार दिए इसके लिए आप सभी सुधिजनो का ह्रदय तल से आभारी हूँ। सादर , सहयोग और स्नेह बनाये रखे


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2013 at 2:50pm

आपकी इस रचना को आपका मील-पत्थर समझ रहा हूँ. क्या कुछ नहीं देखा, क्या कुछ नहीं सुना .. . किन्तु, जो अब जान रहा हूँ उससे काठ सा मार जाता है.

इस संवेदनशील रचना केलिए बहुत-बहुत बधाइयाँ. 

शुभ-शुभ

आदरणीय श्याम जुनेजा जी के सुझाव को ध्यान में रखिये महिमाश्री. आपकी सलाह हर उस लिखने वाले के लिए समीचीन है जो छंदमुक्त को लापरवाह शाब्दिकता से भरते जाते हैं और उसी को रचनाकर्म कहने की हठ पाले रहते हैं.

आदरणीय को मेरा सादर धन्यवाद.

 

Comment by aman kumar on August 7, 2013 at 3:24pm

तुम स्त्री हो !

किसी भी उम्र की हो

क्या फर्क पड़ता है

आदम की भूख

उम्र नहीं देखती

ये सर्वभोमिक सत्य तो नही है पर असत्य भी नही ,

सब पर लागु नही पर किस पर लागु हो जाये कहा भी नही जा सकता 

........ स्त्री विमर्श मे एक अच्छी रचना !

आभार ....

Comment by vijay nikore on August 7, 2013 at 10:40am

आदरणीया महिमा जी:

 

आपने इस सुन्दर रचना के माध्यम नारी की व्यथा का अच्छा चित्रण किया है।

 

सादर,

वि्जय निकोर

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