For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

देहरी पर मन के

किसने रख दिए दो पाँव,

बस गया दो पल में जैसे

एक सुन्दर गाँव!

 

गुप्तचर आँखों ने ढूंढें

रूप के कुछ ठौर,

मन अपेक्षी हर कदम

कहता रहा, कुछ और.

कब मिले जाने इसे अब

कोई अंतिम ठांव!

 

चितवनों के गाँव में

बिखरे अगिन संकेत,

किन्तु जल की आड़ में

छलती गयी है रेत.

रूपसी खेलेगी मुझसे 

और कितने दांव!

 

ले नदी सब नीर अपना

चल पड़ी किस ओर,

चंचला लहरों ने थामी

चांदनी की डोर.

झिलमिलाती चल रही है

ज़िंदगी की नाव!

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 412

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2013 at 9:28pm

वाह वाह .. .

इस उन्नत भाव-दशा को इतने सार्थक शब्द मिले हैं कि मन मुग्ध है.

मन की देहरी पर ठिठके किन्हीं दो पाँवों की यात्रा जो प्रारम्भ होती है वो उत्तरोत्तर रोचक होती चली जाती है. लेकिन कई बिम्ब एकदम से रोकते हैं और मन देर तक उनके गिर्द झूमता है. इस दुलकी यात्रा के दौरान दृश्यों का सुन्दर रुपायन होता है, भाईजी.

बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें.

शुभम्


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 6, 2013 at 9:51pm

बहुत सुन्दर गीत 

गीत के स्थाई में कही गई बात को अंतरे ने और आगे बढाया| बिम्बों और संकेतों ने गीत को नै उंचाइयां दी हैं|

हार्दिक बधाई|

मंच पर गीतों की बयार चल पड़ी है ..मैं अभिभूत हूँ|

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 6, 2013 at 5:12pm

आपके स्रजनात्मक जीवन की नाव यूँ ही चलती रहे,सुन्दर भाव लिए कविता बनती रहे श्री सौरभ श्रीवास्तव जी

हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाए  

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 6, 2013 at 10:30am

वाह आदरणीय सौरभ जी बेहद सुन्दर भावाविभक्ति बेहद सुन्दर पंक्तियाँ इस सुन्दर गीत पर दिल से बधाई स्वीकारें.

चंचला लहरों ने थामी

चांदनी की डोर. इन पंक्तियों पर विशेष तौर से बधाई स्वीकारें आदरणीय

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 6, 2013 at 9:27am

आदरणीय सौरभ श्रीवास्तव जी,

सुंदर , सहज रचना पर आपको हार्दिक बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 6, 2013 at 9:21am

बहुत सुन्दर सहज शब्द चयन, सुन्दर भाव, सुप्रवाहित गठन...हार्दिक बधाई इस सुन्दर सृजन के लिए.

शुभकामनाएँ 

Comment by वेदिका on August 6, 2013 at 8:49am

ले नदी सब नीर अपना

चल पड़ी किस ओर,

चंचला लहरों ने थामी

चांदनी की डोर.

झिलमिलाती चल रही है

ज़िंदगी की नाव!

प्राकृतिक बिम्बों का सहारा लेकर मन की सारी बात कह डाली,,, सुंदर सुंदर

शुभकामनाये आदरणीय सौरभ जी! 

Comment by Pankaj Trivedi on August 6, 2013 at 7:49am

अदभूत गीत ! वाह !  एक सुन्दर गाँव ...

Comment by Abhinav Arun on August 6, 2013 at 4:58am

बहुत सुन्दर आनंदित हूँ ऐसा गीत पढके श्री सौरभ जी , बहुत बहुत बधाई इस सशक्त सृजन पर --

चितवनों के गाँव में

बिखरे अगिन संकेत,

किन्तु जल की आड़ में

छलती गयी है रेत.

रूपसी खेलेगी मुझसे 

और कितने दांव!

क्या मंज़र कशी है वाह वाह बेहद उम्दा !!

Comment by विवेक मिश्र on August 6, 2013 at 12:17am
अहा। क्या सुन्दर गीत हुआ है। मुखड़ा सुनकर ही प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता। तिस पर लय ऐसी कि पूरा गीत एक सांस में पढ़ गया। इस भावपूर्ण सृजन के लिए हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123विषय : जय/पराजय आषाढ़ का एक दिन “बुधौल लाने के…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
5 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
18 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
18 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
23 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service