!!! हाथ नर मलता गया है !!!
बह्र-----2122 2122
भोर जो महका गया है।
सांझ को उकसा गया है।।
रास्ते का ढीठ पत्थर,
पैर से टकरा गया है।
चोट लगती दर्द होता,
आह पहचाना गया है।
ऐ खुदा अब तो बता दे!
राह क्यों रोका गया है?
जान कर अति दर्द उसका,
आंख जल ढरका गया है।
हाय ये तकदीर खेला,
खेल कर घबरा गया है।
कल यहां यमराज देखो,
काल को धमका गया है।
रात रोती शब हंसे यूं,
मौत बस सहमा गया है।
ऐ मेरे बन्दे समझ ले,
काम मुश्किल आ गया है।
तुम अहम् अब मत गिनाओ,
हाथ नर मलता गया है।
आज फिर ‘सत्यम’ जुबां से,
बात को समझा गया है।
के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 गीतिका जी, आपके स्नेह और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार। सादर,
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको! |
बहुत सुन्दर .. बधाई आप को
जान कर अति दर्द उसका,
आंख जल ढरका गया है।
आदरणीय केवल जी, बहुत सुंदर रचना हार्दिक बधाई
रास्ते का ढीठ पत्थर,
पैर से टकरा गया है।
वाह! बहुत खूब लिखा आपने आदरणीय के पी सत्यम जी!!
बधाई लीजिये !!
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