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कहीं बूढा कोई खटिया में बैठा खाँसता होगा ….…

August 8, 2013 at 2:33am

है बहुत मजबूर वो जमाने से भागता होगा 

नींद की ख्वाहिश में रात भर जागता होगा। 

 

रौशनी के चंद कतरे रखे थे अँधेरों से छुपा

क्या पता था कोई दरारों से झाँकता होगा। 

 

जमीं से उठते हुये ताकते रहे आस्माँ को हम

ये न सोचा था कभी वो हमें भी ताकता होगा। 

 

आज समझा अहले दौराँ की तिज़ारत देखकर 

शैतान भी इन्साँ से अब पनाहें माँगता होगा।

 

घटा घनघोर घिरती है गरजती है बरसती है 

कहर की बिजलियों से कौन जाने राब्ता होगा।

 

रात भर ये हवायें धौंकनी सी क्यों चल रही 

कहीं बूढा कोई खटिया में बैठा खाँसता होगा।  

 

-ललित मोहन पन्त 

2. 27 रात 

8. 8 .2013    

मौलिक व् अप्रकाशित 

Views: 852

Comment

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Comment by dr lalit mohan pant on August 8, 2013 at 5:15pm

मैं जानता हूँ मेरी रचनाओं में बेहद शिल्पगत कमियाँ है  … बड़ी हिम्मत से आप लोगों के बीच अपनी बात रखने की कोशिश करता हूँ। ।आप यूँ ही हौसला अफजाई करते रहेंगे तो रफ्ता रफ्ता बेहतर कहने की कोशिश करता रहूँगा  …. सीखने की कोशिश जारी रहेगी   …शुक्रिया    … नवाजिश  …. 

Comment by hemant sharma on August 8, 2013 at 4:48pm

वहुत हि उम्दा गजल ............... वधाई स्वीकारें..........

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 8, 2013 at 4:47pm

बेहद सुन्दर रचना आदरणीय हार्दिक बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 8, 2013 at 3:37pm

आदरणीय डॉ ललित जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दाद क़ुबूल करें

Comment by बसंत नेमा on August 8, 2013 at 3:11pm

रात भर ये हवायें धौंकनी सी क्यों चल रही 

कहीं बूढा कोई खटिया में बैठा खाँसता होगा।  

आ0 ललित जी ,,,, अति सुन्दर रचना ... बधाई ....शुभकामनाये

 

Comment by Shyam Narain Verma on August 8, 2013 at 1:13pm

बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको! "

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