वो अपनेपन का सोता खोल दिल की हर गिरह निकले ।
कगारी फाँद ओंठों की सुरीला गीत बह निकले ।
लरजकर चूम ले माथा, हुमक कर बाँह में भर ले
वो बिछड़ी रात भर की धूप बौरी जब सुबह निकले ।
फकत दो बूँद ने भीतर तलक सारा भिगो डाला
हमारे दिल भी ये कच्चे मकानों की तरह निकले ।
इन्हें पोंछो तो पहले कैफियत पीछे तलब करना
हर आँसू बेशकीमत है वो चाहे जिस वजह निकले
इस अपनी आदमी की देह से इतनी कमाई कर
कि तेरे बाद भी तेरे लिये दिल में जगह निकले ।।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत-बहुत धन्यवाद ! जितेन्द्र गीत जी !
//फकत दो बूँद ने भीतर तलक सारा भिगो डाला
हमारे दिल भी ये कच्चे मकानों की तरह निकले ।//
बहुत ही खूबसूरत शे’र है।
गज़ल के लिए बधाई।
शब्दों का करिश्मा बोलूं ।
या भावों का संगम बोलूं ।
इसे दिल की हकीकत बोलूं ,
या प्यार का मौसम बोलूं ।
इस ग़ज़ल की खिदमत में
जितना ज्यादा बोलूं ,
उतना ही कम बोलूं ।
आदरणीय सुलभ जी जितनी
तारीफ करी जाए उतनी ही कम होगी ।
सूरज को आँख दिखाए
कहाँ दिए में वो दम होगी ।
बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
वाह! बहुत ही खूबसूरत गजल
दिली दाद कुबुलिये आदरणीय सुलभ जी!
फकत दो बूँद ने भीतर तलक सारा भिगो डाला
हमारे दिल भी ये कच्चे मकानों की तरह निकले ।....यह शेर बहुत पसंद आया
हार्दिक बधाई आदरणीय सुलभ जी
बहुत-बहुत धन्यवाद अभिनव अरुण जी !
बहुत-बहुत धन्यवाद विजय मिश्र जी !
फकत दो बूँद ने भीतर तलक सारा भिगो डाला
हमारे दिल भी ये कच्चे मकानों की तरह निकले ।
वाह वाह क्या ही लाजवाब ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई आदरणीय !!
बहुत-बहुत धन्यवाद गिरिराज भण्डारी जी !
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online