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छिपा हुआ रक्षाबंधन का, सार रेशमी डोरी में।
गुंथा हुआ भाई बहना का, प्यार रेशमी डोरी में।
कहीं बसे बेटी लेकिन, हर साल मायके आ जाती,
सजी धजी लेकर सारा, अधिकार रेशमी डोरी में।
बड़ा सबल होता यह रिश्ता, स्वस्थ भाव, बंधन पावन,
गहन विचारों का होता, आधार रेशमी डोरी में।
विदा बहन होती जब कोई, एक वायदा ले जाती,
जुड़े रहेंगे मन के सारे, तार रेशमी डोरी में।
विनय यही हों दृढ़ जीवन में, ये सदैव रिश्ते नाते,
रहे चमकता सतरंगी, संसार रेशमी डोरी में।
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना रामानी
Comment
आदरणीय सौरभ जी, मैं भी आपके विचार से पूरी तरह से सहमत हूँ। इस तरह की रचनाएँ मेहनत अधिक माँगती हैं, लेकिन नया पाने की ललक में वो बात गौण हो जाती है। पाठक भी तो नवीनता ही चाहते हैं न। और अगर कहन में अटकाव या असुविधा न हो तो यह दोष भी गौण है। इस दोष पर तो मेरा ध्यान टिप्पणी के बाद ही गया। पढ़ने में असुविधा होती तो उसी समय बदलाव हो जाता।
आपकी टिप्पणी से मेरे साथ साथ समस्त जिज्ञासु पाठकों को भी अवश्य लाभ होगा।
आपका हृदय से आभार। सादर।
आपकी ग़ज़ल जिस सहुलियत की मांग करती है वह आपने उसे दी. यह तो हुई पहली बात आदरणीया कल्पनाजी.
बह्र की अपनी सूची है लेकिन क्या मिसरे उसके अलावे अन्य विन्यास में नहीं होने चाहिये ? यह प्रश्न अनावश्यक है, यदि हर मिसरे एक विन्यास पर हों और उनकी गेयता और लय में बाधा न आये. आगे, सोचने, समझने और निभाने की बात है.
आपकी ग़ज़ल प्रस्तुति कमाल की हुई है.
सादर बधाइयाँ.. .
ऐबे तनाफ़ुर को लेकर इसी मंच पर बहुत लम्बी वार्ताएँ हुई हैं. हम उनका लाभ उठा सकते हैं. यह काव्य संप्रेषण में एक दशा है जिसका होना परिस्थितियों पर निर्भर करता है.
सादर
केतन जी, मैंने जिस बहर में गजल कही है, वो साथ में ही संलग्न है। जहाँ तक मुझे मालूम है बहर के निश्चित प्रकार नहीं होते। हम जिस छंद या बहर में मतले का शेर कहते हैं उसका निर्वाह पूरी गजल में होना चाहिए। प्रवाह बाधित न हो यह पहली शर्त होती है। जो दोष आदरणीय शिज्जु जी ने बताया है, उस तरफ मेरा ध्यान भी टिप्पणी के बाद ही गया है।उनकी शंका बिलकुल सही है। लेकिन गजल कहते समय मुझे कोई अटकाव महसूस नहीं हुआ इसलिए ध्यान भी नहीं गया। इसमें सुधार की तो कोई गुंजाइश ही नहीं है। इसे या तो यूँ ही रहने दिया जाए या हटा दिया जाए। तीसरा कोई विकल्प नहीं है। बाकी बहर के बारे में जब गुरुजन टिप्पणी करेंगे तभी स्पष्ट हो सकेगा। मुझे स्वयं अधिक अनुभव नहीं है। अभी सीख ही रही हूँ। सादर
आदरणीय केवल प्रसाद जी, विनीता जी, केतन जी, जितेंद्र जी, आप सबका हार्दिक आभार
विदा बहन होती जब कोई, एक वायदा ले जाती,
जुड़े रहेंगे मन के सारे, तार रेशमी डोरी में।............बहुत ही हृदयस्पर्शी शेर
रक्षाबंधन पर्व पर गजल प्रस्तुति हेतु आपको बहुत बधाई आदरणीया कल्पना जी
आ0 रामानी दी जी, सादर प्रणाम! एक सुन्दर, कोमल, स्नेह से परिपूर्ण पवित्र पर्व पर लाजवाब संदेश और भाव भरे हैं। आपको तहेदिल बहुत-बहुत बधाई, लेकिन बह्र के सम्बन्ध में वरिष्ठजन ही मार्ग दर्शन करें तो बेहतर होगा। सादर
बहन, भाई के प्रेम से पगी, सुंदर, समसामयिक पोस्ट. बधाई आदरणीया.
आदरणीया प्राची जी, सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद आपका
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