For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल --" क्यों अन्धेरों में सुलह से रौशनी घबरा रही है "

2122    2122   2122    2122

******************************************

क्या हवायें आज कुछ पैग़ाम ले के आ रही है

धूप भी कुछ गा रही है, छाँव भी इतरा रही है

 

बेख़याली मे कहीं हम हद के बाहर तो नहीं है

आदमीयत आज बैठी क्यूँ यहां शर्मा रही है

 

इस जगह पर तो ख़िज़ां ने भी बहारें ओढ़ ली है

इसलिये ही ज़िन्दगी हर बार धोखा खा रही है

 

गुफ़्तगू  कुछ तो मोहब्बत और नफ़रत मे चली है 

वो भी कुछ समझा रही है ये भी कुछ समझा रही है

 

दोस्त मेरे भूख ज्यादा आज ही क्यों लग रही है

जब मुझे कुछ और ज़्यादा जेब भी तरसा रही है

 

अश्क मेरी आंख से बहना ही क्या काफ़ी नही था

क्यूँ  ये बदली आज पानी इस तरह बरसा रही है  

 

बातिलों में वज़्न कितना ?झूठ की औकात कितनी ?

क्यों अन्धेरों में सुलह से रौशनी घबरा रही है

                 ***************

मौलिक एवँ अप्रकाशित्

Views: 908

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 22, 2013 at 9:47pm

///क्या हवायें आज कुछ पैग़ाम ले के आ रही है

धूप भी कुछ गा रही है, छाँव भी इतरा रही है///   वाह आदरणीय गिरिराज सर बहुत खूब

//बेख़याली मे कहीं हम हद के बाहर तो नहीं है

आदमीयत आज बैठी क्यूँ यहां शर्मा रही है

इस जगह पर तो ख़िज़ां ने भी बहारें ओढ़ ली है

इसलिये ही ज़िन्दगी हर बार धोखा खा रही है//  बहुत खूबसूरत सोच है वाह

//गुफ़्तगू  कुछ तो मोहब्बत और नफ़रत मे चली है 

वो भी कुछ समझा रही है ये भी कुछ समझा रही है// मुहब्बत और नफरत में टकराव वाह!

//दोस्त मेरे भूख ज्यादा आज ही क्यों लग रही है

जब मुझे कुछ और ज़्यादा जेब भी तरसा रही है

 

अश्क मेरी आंख से बहना ही क्या काफ़ी नही था

क्यूँ  ये बदली आज पानी इस तरह बरसा रही है  //  दिल को छूने वाली बात कही है आपने

//क्यों अन्धेरों में सुलह से रौशनी घबरा रही है// आदरणीय गिरिराज सर कृपया इस मिसरे की तक्तीअ पुनः करके देखें

अपनी इस रचना के लिये बधाई कुबूल करें

Comment by ram shiromani pathak on August 22, 2013 at 9:30pm

दोस्त मेरे भूख ज्यादा आज ही क्यों लग रही है

जब मुझे कुछ और ज़्यादा जेब भी तरसा रही है//वाह वाह

 

अश्क मेरी आंख से बहना ही क्या काफ़ी नही था

क्यूँ  ये बदली आज पानी इस तरह बरसा रही है  ///वाह वाह क्या कहने  

हुत ही सुन्दर आदरणीय  //बहुत बहुत बधाई आपको //सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 22, 2013 at 9:03pm

बहुत बहुत शुक्रिया हौसला अफज़ाई के लिये , नीरज भाई

Comment by Neeraj Nishchal on August 22, 2013 at 8:57pm

क्या बोलूं जब कोई इतना लाजवाब लिख जाए ।
तारीफ़ करने पर आऊं तो एक किताब लिख जाए ।

आदरणीय गिरिराज भाई एक एक शब्द में सच्चाई है ।
और हर एक अशयार में बहुत ही ज्यादा गहराई है ।

बहुत+बहुत+ .....................दिली शुभ कामनाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 22, 2013 at 8:21pm

शुक्रिया , जितेन्द्र भाई आप की सराहना ही हमारा उत्साह  है  !!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 22, 2013 at 8:10pm

अश्क मेरी आंख से बहना ही क्या काफ़ी नही था

क्यूँ  ये बदली आज पानी इस तरह बरसा रही है ............वाह! क्या खूब कहा.. जानलेवा शेर है , बहुत पसंद आया

तहे दिल से दाद कुबूल कीजियेगा आदरणीय गिरिराज जी

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service