(मात्रिक विन्यास -- २१२२ २१२२ २१२ )
इतनी आसाँ ज़िंदगी होगी नहीं
मुश्किलों से दोस्ती होगी नहीं |
दर्द से कागज़ पे करना रौशनी
हर किसी से शाइरी होगी नहीं |
रुक न पाया सिलसिला जो बाँध का
कल के दिन भागीरथी होगी नहीं |
इस तरह कुचला गया जो हर गुलाब
फिर किसी घर में कली होगी नहीं |
मुद्दतों के बाद याद आया कोई
मेरे घर अब तीरगी होगी नहीं |
- आशीष नैथानी 'सलिल'
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
लाजवाब गज़ल कही भी सलिल , वाह वाह !!
दर्द से कागज़ पे करना रौशनी
हर किसी से शाइरी होगी नहीं ------------- वाह !!!
वाह बहुत बढि़या
शुक्रिया शुक्रिया भाई जी !
बढ़िया ग़ज़ल भाई आशीष जी बधाई स्वीकार करें
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