कृति मौलिक न होने के कारण प्रबंधन स्तर से हटा दी गई है |
एडमिन
2013083107
Comment
आदरणीय नीरज जी जो आपत्ति आदरणीया गीतिका जी ने उठायी है उसके संबंध में आपको यह स्पष्टीकरण तो देना ही चाहिए कि यह कहानी क्या वास्तव में आपकी सोच का परिणाम है या फिर आपने कहीं से पढ़कर इसे अपने शब्द दे दिए। रामायण या महाभारत का आधार लेकर विषयांतर नहीं किया जाना चाहिए।
सादर!
आदरणीया गीतिका जी हम इस अस्तित्व में कुछ नया पदार्थ नही पैदा कर सकते और ना ही हम कोई नया विचार पैदा कर सकते हैं क्या कभी कोई कहानी पढ़कर आपको ऐसा नही लगता ऐसा मुझे भी समाज में देखने और सुनने को मिला है , और वैसा अगर आपको देखने और सुन ने को ना मिला हो तो आप शायद उसको समझ ही नही पाती , हमने भी उसे देखा हमने भी उसे समझा पर लेखक ने उसे अपने शब्द दिए हैं लेखक के पास शब्द देने की ही कला है बाकी देख सुन और समझ तो शायद सब रहे हैं , सबसे बड़ा प्रश्न तो यही है क्या कहानियाँ मौलिक हो सकती हैं क्या कोई ऐसी कहानी हो सकती है जो हमारे कभी देखने सुनने में ना आई हो अगर ऐसा हो जाए तो जान ना आपने काहानियाँ कुछ कम पढ़ी हैं और समाज को पूरे तरीके से देखने में आप सक्षम नही हैं , क्यों की लेखक कुछ समाज से बाहर तो नही सोच लेगा और अगर वो ऐसा कर भी ले तो आपके समझ में नही आएगी ,गीता के कितने संस्करण मै पढ़ गया सभी मौलिक थे , पर उसमे किसी ने कोई नयी बात नही कह दी सब बात को अपने अपने ढंग में कह रहे हैं , लेखक जो कह रहा है आप भी उसे जानते हैं और आप उसे आसानी से समझ लेते हैं मौलिक है तो लेखक के लिखने का अंदाज । सुभद्रा कुमारी जी के बाद अगर मै भी झांसी की रानी पर कविता लिखूं तो सबकुछ वैसा ही घटेगा मै भी वही बातें लिखूंगा जो उन्होंने लिखी जैसा उनकी कहानी में घटा है पर जो मौलिक चीज होगी वो मेरी शब्दों की सजावट मेरी तुकबंदी मेरा ढंग , हम अपनी दीवार को नया करने के लिए नयी दीवार तो नही बनाते हैं ना उस पर नया रंग ही चढ़ा सकते हैं । सादर
आपकी बात भी सही है, और मेरी जानकारी भी| सिर्फ कुछ शब्दों के हेरफेर से वस्तु मौलिक तो नही हो जाती| वही बच्चा, वही दिया, वही युवक, वही दिया का जलना और उसका फूंक मार के बुझा के युवक को आत्म ज्ञान देना| कथा के मर्म को अपनी भाषा में लिखने से यदि उसे मौलिक कहा जाये तो मुझे ज्ञात नही था आदरणीय नीरज जी !! मुझे जो नीतिगत लगा सो बताया, आगे जिम्मेदारी मंच की है ..... सादर !!
दुनिया में जीतनी रामायण हैं सभी मौलिक हैं
ऐसा तो मानती हैं आप
आदरणीया गीतिका जी किसी बड़े लेखक ने कहा है विचार और दृष्टांत कभी मौलिक नही होते,
कोई भी लेखक कुछ नया नही लिख रहा है बस वो किसी घटना या किसी
दृष्टांत को अपने शब्द ही दे रहा है और लेखक किसी घटना या दृष्टांत को
अपने शब्द देता है वो मौलिक है , लेखक कुछ भी लिखता है कहीं से प्रेरणा पाकर ही लिखता है ,
कोई बच्चा जन्म लेकर तुरंत ही तो लेखक नही हो जाता ।
यह दृष्टांत मैंने बचपन में एक धार्मिक पत्रिका अखंड ज्योति में पढ़ा है| और कुछ वर्ष पहले ओशो वर्ल्ड में भी, फिर यह मौलिक और अप्रकाशित कैसे हुआ !!
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