ओसारे में बुद्धि-बल, मढ़िया में छल-दम्भ |
नहीं गाँव की खैर तब, पतन होय आरम्भ |
पतन होय आरम्भ, बुद्धि पर पड़ते ताले |
बल पर श्रद्धा-श्राप, लाज कर दिया हवाले |
तार-तार सम्बन्ध, धर्म- नैतिकता हारे |
हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे ||
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
सुन्दरम, अति सुन्दरम, सादर
आदरणीय / आदरेया
आप सभी का बहुत बहुत आभार-
सादर
बहुत सुन्दर ... बधाई स्वीकारें आ० रविकर जी
पतन होय आरम्भ, बुद्धि पर पड़ते ताले |
बल पर श्रद्धा-श्राप, लाज कर दिया हवाले |///////////बहुत सटीक व्यंग है आदरणीय //हार्दिक बधाई आपको //सादर
आदरणीय रविकर जी सुन्देर दोहों के लिये बधाई स्वीकारें !
इन सामयिक कुंडलियों के माध्यम से छल-दंभ पर चोट करने के लिए बधाई भाई श्री रविकर जी
वाह! बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
आ० रविकर जी उत्तम दोहे , बहुत बधाई आपको ।
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ. |
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