मौलिक एवं अप्रकाशित
तुम में ही लीन प्रान मेरे , प्राणों में मेरे प्रियवर हो
इसलिये विलग होकर भी तुम, मुझमे ही सदा निवासित हो
अलके पलकें भी रो रोकर , दो चार अश्रु ही चढ़ा रही
मेरे भगवन मेरे प्रियतम, बस राह धूल ही हटा रही
---
खुद के अन्दर तुम तक जाना, चरणोदक पीकर जी जाना
इस धूल धूसरित मन से ही , अपने प्रियतम में लग जाना
आकुल व्याकुल इस साधक पर, कुछ प्रेम सुधा बरसा जाना
ये कठिन साधना साधक की , खुद में ही तुमसे मिल जाना
---
खुद के अन्दर झाँका हमने , तेरी सूरत ही मुझे मिली
वात्सल्य भाव ममता झांकी , तेरी मूरत ही बनी मिली
मीरा सी भक्ति नहीं मुझमें , चरणामृत पीने वाला हूँ
राधा सी शक्ति नहीं मुझमे , मैं भक्त सुदामा वाला हूँ
---
जुगुनू सा भटक रहा भगवन, मैं रजनी की इस साजिश में
मन मीन बिना जल तड़प रहा, तुमसे मिलने की कोशिश में
मुझसे मेरी इस मैं मैं को , लो मुझसे छीन अहम मेरा
चरणों में रहकर चरणों में , सर्वस्व समर्पण है मेरा
आशीष श्रीवास्तव ( सागर सुमन )
Comment
मुझसे मेरी इस मैं मैं को , लो मुझसे छीन अहम मेरा
चरणों में रहकर चरणों में , सर्वस्व समर्पण है मेरा | ------बहुत सुन्दर भाव लिए पगी रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री आशीष भाई
शिक्षक दिवस पर सुमन से खिली कविता से भाव मिले
चरणों में रहकर चरणधूलि से मन के सारे मेल धुले |
"सागर" में "सुमनों" की वर्षा, तो विष्णु बड़े संतुष्ट हुवे |
भगवान् भक्त सम्बन्ध आज, सचमुच ही पक्के पुष्ट हुवे-
बहुत बढ़िया आदरणीय-
शुभकामनायें-
सुंदर रचना अभिव्यक्ति , बधाई आदरणीय आशीष जी
अति सुन्दर .... बहुत बहुत बधाई
भावगर्भित कलात्मक रचना हेतु आदरणीय श्रीवास्तवजी आपको हार्दिक बधाई
श्री गिरिराज भंडारी जी
वात्सल्य भाव से बधाई देने हेतु आभार
आदरेय annapurna bajpai जी
बधाई से ह्रदय स्पंदित करने के लिए आभार
आदरणीय आशीष भाई , अति सुन्दर रचना , एक कातर प्रार्थना !! बधाई !!
खुद के अन्दर झाँका हमने , तेरी सूरत ही मुझे मिली
वात्सल्य भाव ममता झांकी , तेरी मूरत ही बनी मिली
मीरा सी भक्ति नहीं मुझमें , चरणामृत पीने वाला हूँ
राधा सी शक्ति नहीं मुझमे , मैं भक्त सुदामा वाला हूँ ------------- लाजवाब !!
आ0 अनुपम रचना के लिए बधाई स्वीकारें ।
आदरेय ram shiromani pathak की , रचना की रचनानात्मक बधाई के लिए आभार
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online