अंधकार गहरा चला अब
सितारों से भर चला नभ
चाँद हौले से मुस्का दिया
अप्रतिम अलौकिक सुंदरता ...................
सुंदरी की खुली अलकें सी
चाँदनी भी छिटकने लगी
कण कण दुग्ध मे नहाया सा
प्रफुल्लित हो चला मन
लगता था जो पराया सा ........................
तप्त धरा सी वो
पाई जिसने शीतलता
नीरवता तोड़ता विहग
आवरण जो असत्य का ,
अंधकार वो अहम का
हौले हौले .......................
चेतना लौटी प्रबुद्धता आई
नैसर्गिक अविचलता लाई
प्रेम और विश्वास का
स्नेह और उल्लास का
सागर लेने लगा हिलोरें....................................
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया अन्नपूर्णा जी ///हार्दिक बधाई
आ0 अन्नपूर्णा जी, सादर प्रणाम! सुन्दर प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
bahut Umdaaa TakhayyuL
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