एक शाम
उदास सी थी
निस्तेज , निशब्द , निस्पंदित
निहारती सी
दूर तलक शून्य मे।
कर्तव्य विहीन, कर्म विहीन
अचेतन जड़ हो गए जो
पुकारती सी
दूर तलक शून्य मे ।
नेपथ्य से कुछ सरसराहट
वैचारिक या मौन
विजयी पर प्रसन्न नहीं
श्रोता सी
दूर तलक शून्य मे ।
अन्तर्मन के क्रंदन को
छिपा मुख मण्डल पर खेलती जो
अलौकिक आभा थी
दूर तलक शून्य मे ............... ।
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
आदरणीया अन्नापूर्ण जी , एक अति सुन्दर कृति पर हार्दिक बधाई आपको !
आदरणीय कुशवाहा जी आपका हार्दिक आभार ।
दूर तलक शून्य मे ।
नेपथ्य से कुछ सरसराहट
सुन्दर भाव
बधाई सादर
बहुत बढ़िया ....सुन्दर भाव सहेजे एक अच्छी कविता ...! बधाई मैडम :)
adarniy Neeraj ji apka hardik abhar .
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना आदरणीय
आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेई जी
इस अभिव्यक्ति में मन ही गहराइयों से सत्य को खोजती जिस निःशब्दता को शब्द मिले हैं.. उसके लिए आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ.. निःसारता से सार की ओर सामंजस्य बैठाती इस अभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई
सादर.
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