(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
उत्साहवर्धन करती टिप्पणी हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया प्राची जी |
//कभी कभी तो बस वापस आ जाओ ..दिल्ली रहने लायक नहीं है सुनना पड़ता है//
महिमा आप की बात से इतफाक रखता हूँ, खैर लड़ना ही जिन्दगी है, आपकी प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ।
आदरणीय बागी जी सच्चाई यही है ! बहुत सी घटनाएं पढी सुनी नाच गईं ! बहुत् बहुत बधाई !
आदरनीय बागी जी ...लघु कथा नहीं ये तो लघु लघु कथा है ..आपने तो जैसे इशारों में हेई सब कह दिया ..हार्दिक बढ़ायी
आदरणीय गणेश जी यथार्थ से अवगत कराती बहुत ही सुन्दर लघुकथा //हार्दिक बधाई आपको //सादर
अत्यंत लघु रूप मे बढ़िया चित्रण हार्दिक बधाई
आज के माहौल में अपनी बेटियों के लिए चिंता होना जायज है किन्तु सोचने वाली बात है जब सभी को अपनी बेटियों की चिंता सताती है तो ये हैवानियत क्यों?? क्या दूसरे की बेटी बेटी नहीं होती क्यों नहीं ऐसे कानून बनते जिससे इस समस्या का निदान हो ,कुछ ही शब्दों में आपने बहुत कुछ कह दिया ,इस लघुकथा हेतु आपको हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी |
सच है आज इसी डर में जी रहे हैं सभी
आज बेटियों को घर से बाहर भेज.. हर माता पिता को उनकी कुशलता की चिंता सताती है, पल पल वो इस दुष्-आशंका के साये में जीते हैं कि कहीं कुछ गलत ना हो जाए..
इस भय को व्यक्त करती सुगठित लघु कथा अपने उद्देश्य में सफल है.
इस लेखन के लिए हार्दिक बधाई
बहुत बहुत आभार प्रिय संदीप भाई |
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