(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय अभिनव अरुण जी, आपकी टिप्पणी सदैव मार्गदर्शन करती है, बहुत बहुत आभार |
उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार भाई बृजेश जी।
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय जीतेन्द्र जी, स्नेह बना रहे ।
आदरणीय भ्राताश्री जय हो आपका जवाब नहीं इतने कम शब्दों में आपने बहुत ही बड़ी बात कह गए कितनी सरलता से इस लघुकथा का निर्माण किया है आपने. समय ही ऐसा आ गया है कि एक पिता का यह डर स्वाभाविक है. हृदयतल से बधाई स्वीकारें इस लघुकथा पर.
माता पिता की भी चिंता जायज़ है, और सुरक्षा कारणों के चलते बच्चों के भविष्य से भी नहीं मुह मोड़ा जा सकता|
कथा का संदेश मर्म लिए है |
बधाई !!
प्रभावी-
लघु कथा-
आभार आदरणीय
आदरणीय बागी जी कम शब्दों में अच्छी लघु कथा ,आपको हार्दिक बधाई
नीरज भाई ने सही कहा है नारी सुरक्षा मे पुरुषो पर अब भारी जिम्मेदारी है की अपने वर्ग के कलाकित तत्वों को खोज कर नष्ट करे ,
पर एक पिता की मानो दशा आपने सटीक दर्शा दी है |
आपकी कथा सच मे , सत्य कथा है !
आभार
लघुकथा लेखन को एक नयी ऊर्जा नए आयाम दे रहे हैं श्री बागी जी ...जारी रखिये ..सामयिक घटनाक्रमों के सूत्र कथाओं में पिरोने के लिए बहुत बहुत साधुवाद आदरणीय !!
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