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याद है !!
जब तुम्हारा जन्म हुआ था
एक नर्म तौलिये में लपेट
मुझे तुम्हारी एक
झलक दिखलाई थी
तुम्हे देखते ही
भूल गयी थी दर्द सारा
खों गयी थी
गुलाब की पंखुड़ियों जैसी सूरत में
कितना प्यारा था स्पर्श तुम्हारा
नर्म
बिलकुल रुई के फाहों जैसा
खुश थी छू के तुम्हे

तुम मद मस्त नींद में
लग रहा था
लम्बा सफ़र तय किया है तुमने
कितने दिनों के थके हो जैसे
 
जब तुमने
आँखें खोली पहली बार
इस नयी दुनिया को देखने की कोशिश
तुम्हारी काली चमकदार आँखें
ढूंढ रही थीं कुछ
मै हर्षित देख रही थी
तुम्हे आँखें घुमाते हुए
जब तुमने
अपना सिर घुमा के
करीब देखा मुझे
एक हल्की मुस्कान के साथ
आँखे बंद कर के सो गये
जैसे तुमने पा लिया था उसे
जिसे ढूंढ रहे थे
मै तुम्हे नींद में मुस्कुराते देख
ऐसे तृप्त हो गयी थी जैसे
बंजर जमीन हो गई हो हरी-भरी
पतझड़ के बाद आ गयी हो बसंत ऋतु
पड़ी हो सूखी धरती पर बरखा की फुहार
आँचल से फूट पड़ी ममता की धार 
तुम्हे अपने आँचल से ढक
कलेजे से लगा कर
मै भी सो गई थी !!....
 
आज तेरी छवि है मेरे सामने
पर कलेजे से लगाने को तरसती हूँ
आँखों में आँसूओं का समंदर,
हृदय में ममता की लहरें
दूर तु मुझसे और मै तुझसे
मिलेगा कभी ना कभी
यही आस,
यही उम्मीद लिए बैठी हूँ ||!!!

मीना पाठक

मौलिक /अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Meena Pathak on September 7, 2013 at 6:46pm

आ० सकूर जी आभार स्वीकारें

Comment by Meena Pathak on September 7, 2013 at 6:44pm

आ० डा० आशुतोष जी हर माँ ऐसा ही सोचती है
सादर आभार

Comment by Meena Pathak on September 7, 2013 at 6:43pm

आ० राम शिरोमणि जी बहुत बहुत आभार

Comment by Meena Pathak on September 7, 2013 at 6:42pm

आ० अरविन्द भटनागर जी हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 7, 2013 at 3:50pm

///जब तुम्हारा जन्म हुआ था 
एक नर्म तौलिये में लपेट 
मुझे तुम्हारी एक
झलक दिखलाई थी 
तुम्हे देखते ही
भूल गयी थी दर्द सारा 
खों गयी थी 
गुलाब की पंखुड़ियों जैसी सूरत में 
कितना प्यारा था स्पर्श तुम्हारा 
नर्म 
बिलकुल रुई के फाहों जैसा ///

आदरणीया मीना जी इसे तो कोई माँ ही महसूस कर सकती है मेरे पास अल्फाज़ ही नहीं है तारीफ़ के लिये इस खूबसूरत रचना के लिये आपको बधाई 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 7, 2013 at 3:44pm

ममता का कोई सानी नहीं ,,,मर्म से भरी ..भावुक कर देने वाले शसक्त रचना ..ये जीवन को वो खेलो था जो हमने अभिनेता की तरह खेला था पर स्मृति में नहीं था ..आज महसूस कर रहा हूँ..के शायद माँ भी ऐसा ही सोचती होगी 

Comment by ram shiromani pathak on September 7, 2013 at 3:09pm

मै तुम्हे नींद में मुस्कुराते देख 
ऐसे तृप्त हो गयी थी जैसे
बंजर जमीन हो गई हो हरी-भरी 
पतझड़ के बाद आ गयी हो बसंत ऋतु 
पड़ी हो सूखी धरती पर बरखा की फुहार 
आँचल से फूट पड़ी ममता की धार  
तुम्हे अपने आँचल से ढक 
कलेजे से लगा कर 
मै भी सो गई थी !!....अनुपम पंक्तियाँ ///मेरे ऑंखें भर आई 

आदरणीया मीना जी ,बहुत ही  मार्मिक अभिव्यक्ति///हार्दिक बधाई आपको //सादर  

Comment by ARVIND BHATNAGAR on September 7, 2013 at 2:21pm

बहुत सहजता से एक माँ की कोमल भावनाओं को अभिव्यक्त किया है मीना जी आपने । शुभकामनायें । आदरणीय प्राची जी  माँ से दूर हो गया हर बेटा  संवेदनहीन हो   जरुरी तो नहीं , वो मजबूर भी तो हो सकता है । Arvind Bhatnagar'Shekhar'

Comment by Meena Pathak on September 7, 2013 at 9:31am

आदरणीया प्राची जी बहुत बहुत आभार
सादर

Comment by Meena Pathak on September 7, 2013 at 9:30am

परम आदरणीय विजय निकोर जी सादर आभार स्वीकार करें

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