मन के उपजे कुछ हाइकू आपके समक्ष --
१
मन के भाव
शांत उपवन में
पाखी से उड़े .
२
उड़े है पंछी
नया जहाँ बसाने
नीड है खाली ।
३
मन की पीर
शब्दों की अंगीठी से
जन्मे है गीत।
४
सुख औ दुःख
नदी के दो किनारे
खुली किताब।
५
मै का से कहूँ
सुलगते है भाव
सूखती जड़े।
६
मोहे न जाने
मन का सांवरिया
खुली पलकें
७
मन चंचल
बदलता मौसम
सर्द रातों में।
८
मन उजला
रंगों की चित्रकारी
कलम लिखे।
मौलिक और अप्रकाशित
-- शशि पुरवार
Comment
प्रिय शशि जी
बहुत सुन्दर हायकू.... हार्दिक बधाई
दूसरे और तीसरे हायकू में पंक्तियों की एक दूसरे पर निर्भरता है..वो पूर्णतः स्वतंत्र नहीं हैं.. मुझे ऐसा लगता है . पुनःदेखिएगा
आदरणीय शशि जी , उम्दा हाईकू !! बधाई !!
सभी हाइकु प्रभावी हैं आदरणीया शशि जी
बहुत खूब
सुंदर हाइकु बहुत बधाई आपको । आ0 शशि जी ।
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