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कुंडलिया छंद-लक्ष्मण लडीवाला

(1)

कन्या होती भाग्य से,रखना इसका मान

कन्या घर में आ रही, ले गौरी  वरदान |

ले गौरी वरदान,  आँगन कुटी मह्कावे,

घर आँगन चमकाय,कुसुम कलियाँ खिलजावे

शिक्षा का हो भान, बनावे शिक्षित सुकन्या

रखती मन में धैर्य,कष्ट सहती है कन्या

.

(2)

जन्मे बेटी भाग्य से, घर को दे मुस्कान

पालन -पौषन  साथ ही, पावे  शिक्षा ज्ञान |

पावे  शिक्षा ज्ञान, समाज बने संस्कारी   

नारी का हो मान, करे देश प्रगति भारी |

दे दो ये सन्देश, शिक्षित बेटी हो घर में

घर होवे खुशहाल, जहां घर  बेटी जन्मे |

(मौलिक व् अप्रकाशित)

 

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Comment

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Comment by Parveen Malik on September 12, 2013 at 9:55pm
बेटियाँ घर की ही नहीं दुनिया की शान हैं ... बहुत सुन्दर आदरणीय !

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 12, 2013 at 7:02pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , शानदार बात , शानदार कुंडलिया !! बधाई !!

Comment by रमेश कुमार चौहान on September 12, 2013 at 4:13pm

बहुत ही अच्छा आदरणीय बधाई

Comment by रविकर on September 12, 2013 at 2:15pm

बहुत बढ़िया -
आभार आदरणीय

टकी टकटकी थी लगी, जन्म *बेटकी होय |
अटकी-भटकी साँस से, रह रह कर वह रोय |
रह रह कर वह रोय, निहारे अम्मा दादी |
मुखड़ा है निस्तेज, नारियां लगती माँदी |
परम्परा प्रतिकूल, बेटकी रविकर खटकी |
किस्मत से बच जाय, कंस तो निश्चय पटकी ||
*बेटी

मौलिक / अप्रकाशित

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 12, 2013 at 1:29pm

लक्ष्मण भाई , बधाई। बेटियों से ही घर, घर लगता है। 

.....बनावे शिक्षित सुकन्या ( सु-  प्रवाह में रुकावट है, कन्या ही रखें )।

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