For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मरा कौन ?

कही पे हिन्दू मरता है ।

कही मुसलमान मरता है ।।  

चले जब तलवार नफरत की ।

तो बस इंसान मरता है ॥

 

कही पर घर जलता है ।  

कही मकान जलता है ॥  

मगर इन लपटो से मेरा ।

प्यारा हिन्दुस्तान जलता है ॥

 

न कुछ हासिल तुम्हे होगा ।

न कुछ मेरा भला होगा ।

दरख्तो पे जो बैठे है ।

बस गिद्धो का भला होगा ॥

 

कही मन्दिर पे है पाँबन्दी ।

कही मस्जिद पे पहरा है ।।

बिछी शतरंज सियासत की ।

धरम तो बस एक मोहरा है ।।

 

ये सत्ता के पुजारी है ।

ये कानून के मदारी है ।।

इन्हे क्या फिक्र ओरो की ।

ये तो फुटकर व्यापारी है ।।

 

लडा कर हम को आपस मे ।

तमाशा वो दूर से देखे ।।

लगा कर आग मजहब मे ।

वो अपने हाथ को सेके ।।

 

तबाही देख कर जंग की ।

खुदा का दिल भी भर आया ।।

बना कर नादान इंसा को।

फिर सोचा मैने क्या पाया ।।

 

न तूने हिन्दु को मारा ।

न मुसलमान को मारा ।।  

मै तो हर दिल मे रहता हू ।

बता तूने किसे मारा ।।  

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 663

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 14, 2013 at 1:07pm

आदरणीय नेमा जी ..वर्तमान परिदृश्य को इंगित करती इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2013 at 8:51am

आपकी इस भाव प्रधान रचना को पढ़कर मेरा ही कहा एक शेर याद आता है .....
चलो मिल बैठ कर सोचे लड़ाई क्यों हुई आख़िर,
किसी को फायदा होगा जो आपस में लड़ाता है |

इस रचना में आपने कई कई बातों को खोल कर रख दिया है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय नेमा जी .

Comment by बृजेश नीरज on September 13, 2013 at 6:54pm

वाह! बहुत ही सुन्दर! आपको ढेरों बधाई!

Comment by बसंत नेमा on September 13, 2013 at 5:01pm

आ0 जितेन्द्र जी, आ0 गिरिराज जी, आ0 शैजु जी ,  सादर नमन वन्दन  , रचना को आप गुणी जनो का अशीष मिला, रचना की सार्थकता सिध्ध हुई , ऐसे ही आप  का समय  और अशीष मिलता रहे.. यही  कामना करता हू \ धन्यवाद शुक्रिया .... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 13, 2013 at 4:48pm

///////कही पे हिन्दू मरता है ।

कही मुसलमान मरता है ।।  

चले जब तलवार नफरत की ।

तो बस इंसान मरता है ॥//////

आदरणीय बसंत जी आपकी इस सामयिक रचना में आपने सच्चाई बयान की है, इस रचना के लिये दाद कुबूल करे.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 13, 2013 at 4:09pm

आदरणीय बसंत भाई सुन्दर गीत , दिमाग मे प्रश्न छोडता हुआ ! बधाई !

न तूने हिन्दु को मारा ।

न मुसलमान को मारा ।।  

मै तो हर दिल मे रहता हू ।

बता तूने किसे मारा ।।  ------------------- ज्वलंत सवाल !! वाह वा !!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 13, 2013 at 3:07pm

न कुछ हासिल तुम्हे होगा ।

न कुछ मेरा भला होगा ।

दरख्तो पे जो बैठे है ।

बस गिद्धो का भला होगा ॥..........बहुत सुंदर

सन्देशप्रद रचना , बहुत बहुत बधाई आदरणीय बसंत भाई 

Comment by बसंत नेमा on September 13, 2013 at 2:34pm

आ0 अखिलेश जी , आप ने रचना को समय दिया बहुत बहुत शुक्रिया धन्यवाद , ऐसे ही अपना अशीष  बनाये रखे ......

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 13, 2013 at 1:55pm

बसंत भाई ऐसे सामयिक गीत के लिए ( जो कि भारत के लिए 1947 से आजतक  सामयिक ही है ) बहुत - बहुत बधाई ।

 बस की जगह--" प्यारा हिन्दुस्तान जलता है" भावपूर्ण लगता है। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service