For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी । गजल (प्रथम प्रयास )

मुतदारिक मुसद्दस सालिम

212 /212/ 212

जिन्दगी  जिन्दगी  जिन्दगी ।

बन्दगी तिश्नगी आशिकी ॥

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।

खेल भी जीत भी हार भी ॥

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।

इश्क भी  अश्क भी मौत भी ॥

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी । 

देश भी धर्म भी कर्म भी  ।।

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी । 

शब्द भी नज़्म भी नग़्म भी ।।

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।   

तख्त भी अर्श भी गर्द भी ॥

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी । 

फर्ज भी कर्ज भी दर्द भी ॥

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी।

मीत भी खैर भी बैर भी  ॥

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।

भूख भी प्यास भी नीँद भी ॥

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।

शूल सी  फूल सी नूर सी ॥

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 894

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Saarthi Baidyanath on October 6, 2013 at 2:41pm

आदरणीय नेमा जी ... प्रयास सराहनीय है ! अच्छा लगा ..कुछ बारीकियां हैं जो हम सभी सीख रहे हैं !..हम सभी अच्छे मंच पर हैं, हमें अनवरत सीखना चाहिए बड़ों से !..बड़ों को सुनकर ..बड़ों को पढ़कर ! बड़े बड़े जानकर हैं गज़लगोई के यहाँ ... प्रयासरत रहिये ..इसी मंच से मैं आपके कलम से एक दमदार ग़ज़ल सुनने की उम्मीद करता हूँ !..

विधा ज्ञान में मैं भी अल्पग्य हूँ ...लेकिन कोशिश , प्रयास हमेशा रंग लाती है ! शुभकामनाएं :)

Comment by बसंत नेमा on October 4, 2013 at 1:50pm

आ0 सौरभ जी सादर नमन वन्दन ....

तहे दिल से शुक्रिया ये जो भी बधाई है उसके सही हकदार आप है आप का ही मार्ग दर्शन था जो ये सब हो रहा है ... नही तो क्या होता .......... :)   ))))  ये आप को पता है ....... आ0 विनस जी की बातो का पूरा पूरा ध्यान रख कर आगे बढता रहुंगा .... आप का आभार शुक्रिया धन्यबाद

  

Comment by बसंत नेमा on October 4, 2013 at 1:45pm

आ0 विनस जी सादर नमन

आप का ध्यान रचना पे गया ये मेरे लिये बहुत बडी बात है ... मै इसकी तकनीकी बारे मे तो ज्यादा नही जानता .. पर

  मैने ये कुछ दिन पहले एक कार्यक्रम मे आ0 डाँ उर्मिलेश शंकर जी की एक गजल (लडकिया लडकिया लडकिया )  उनकी सुपुत्री द्वारा सुनी थी ..... उस गजल को आधार रख के मैने अपने ख्यालो को ढाल के आप के समक्ष रखा ,,, आप का आषीश यूँ ही  मिलता रहे .....ऐसी मनोकामना के साथ ......धन्यवाद शुक्रिया ......

Comment by बसंत नेमा on October 4, 2013 at 1:41pm

आ0 रमेश जी सादर नमन

शुक्रिया धन्यवाद आप ने रचना को समय दिया .......... शुर्किया

Comment by बसंत नेमा on October 4, 2013 at 1:40pm

आ0 गनेश जी ... सादर नमन वन्दन ..

शुभकामनाओ के लिये बहुत बहुत धन्यवाद ..... ये सब ओबीओ परिवार का आशिर्बाद है की मेरा प्रयास आप की कसौटी तक पहुचा ... शुक्रिया .....धन्यवाद

Comment by बसंत नेमा on October 4, 2013 at 1:37pm

आ0 गिरिराज जी ...सादर नमन वन्दन

आप दिल से निकली शुभकामनाओ के लिये तहे दिल से शुक्रिया आभार ,,,, 

Comment by बसंत नेमा on October 4, 2013 at 1:36pm

आ0  ब्रजेश जी  सादर नमस्कार ...

देरी के लिये क्षमा .....

गजल आप को पसन्द आई मेरे लिये आंगे बढने का रास्ता प्रसस्त कर दिया ......आभार शुक्रिया

Comment by बसंत नेमा on October 4, 2013 at 1:35pm

आ0 अरुन जी  सादर नमस्कार ...

देरी के लिये क्षमा ..... मेरे गजल के प्रथम प्रयास को आप  का अषीश मिला उसके लिये तहे  दिल से शुक्रिया  ...आभार नमन ...

मै इस तकनीक के बारे मे ज्यादा तो नही जानता बस यहा से पढा और अपने ख्याल को एक गजल के रुप मे ढालने का प्रयास किया है "


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2013 at 3:28pm

:-))))))

वीनस जी ने बहुत कुछ कह दिया है, समीचीन है.

शुभेच्छाएँ

Comment by वीनस केसरी on October 3, 2013 at 2:17am

बहुत खूब भाई जी ....
इस प्रस्तुति पर ढेरो बढ़ाई

बधाई इस लिए भी बनती है कि आपने प्रयोग करने का खतरा उठाया

बढ़ाई आपकी प्रयोगधर्मिता पर,
आपकी नवीनता पर

प्रयोग करना खतरे से खाली नहीं होता .,,,

भाव कहन और शिल्प
जब इन तीनो कसौटियों पर हम इस ग़ज़ल को अलग अलग परखते हैं तो इसे सफलता के पैमाने में ढाल देने को जी चाहता है मगर जब एक साथ पैमाईश होती है तो मुझे लगता है इस प्रयोग को और साधने के जरूरत है ....

जैसा कि मतले से स्पष्ट है ग़ज़ल के अन्य सभी अशआर हुस्ने मतला हैं ...
तो अधिकांश अशआर के दोनों मिसरों में कवाफी का वही होना ग़ज़ल को उस उचाई तक नहीं ले जा पा रहा है ,,, काफिया ही शेर में चमत्कार उत्पन्न करता है काफियापैमाईश का अपना ही लुत्फ़ होता है ... इस ग़ज़ल में आपने पाठकों को उस लुत्फ़ से सर्वथा वंचित कर दिया है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सालिक गणवीर shared Admin's page on Facebook
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर  होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service