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रुक्न --फ़ाइलातुन ,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
बह्र --रमल मुसद्दस महजूफ
पत्थरों से ज्यों मुहब्बत हो रही
गुगुनाने को तबीयत हो रही
रोज करते थे परेशाँ फूल को
आज भँवरों से अदावत हो रही
क्यों लुभाते हैं नज़ारे ये मुझे
दिल लगाने की हिमाक़त हो रही
घात में बैठे हैं लेकर कैंचियाँ
तितलियों को ये शिकायत हो रही
मैं डुबा दूँ नफरतों की कश्तियाँ
होंसलों की बस जरूरत हो रही
सब पले इक ही नदी के दूध से
भाइयों में क्यों बगावत हो रही
यूँ गिराया है मेरा शीशा- ए- दिल
बस बिखरने की गनीमत हो रही
उड़ चुकी हैं हसरतों की धज्जियाँ
प्यार की सच्ची कहावत हो रही
रहमतों के बोझ से जो झुक गए
बदगुमा उनकी शराफ़त हो रही
'राज' रुपये की कहाँ कीमत बची
देश भर में ये नसीहत हो रही
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मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय जितेन्द्र गीत जी ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया पढ़ कर हर्षित हूँ दिल से आभार आपका
आदरणीय वीनस जी ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया पढ़ कर कितना उत्साह वर्धन हुआ मैं शब्दों में बयाँ नहीं कर सकती,मेरी ग़ज़ल धन्य हुई ओ बी ओ पर आप जैसे विद्वद जनों के मार्ग दर्शन में ही हम लोग धीरे धीरे आगे बढ़ रहे हैं तहे दिल से शुक्रिया
मैं डुबा दूँ नफरतों की कश्तियाँ
होंसलों की बस जरूरत हो रही.........यह शेर बहुत पसंद आया
बेहतरीन गजल प्रस्तुति, बहुत बहुत बधाई आदरणीया राजेश जी
वाह वा आदरणीया ग़ज़लगोई का आपका हुनर काबिले तारीफ़ है
हर शेर ग़ज़ल में होने का हक अदा कर रहा है ....
आपकी ग़ज़लों का इंतज़ार रहता है
आदरणीया सावित्री जी ग़ज़ल आपकी सराहना पाकर धन्य हुई दिल से आभारी हूँ
राजेश जी अत्यंत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है,प्रत्येक शेर एक से बढ़कर एक है .....बधाई हो।
नीरज कुमार जी ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ |
वाह बहुत खूब .. बेहतरीन ग़ज़ल कही है
आदरणीया अन्नापूर्णा जी आप को ग़ज़ल पसंद आई बहुत ख़ुशी हुई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ|
मैं डुबा दूँ नफरतों की कश्तियाँ
होंसलों की बस जरूरत हो रही.................... सही है बस हौसलों की ही जरूरत है ताकि ये नफ़रतों की कश्तीयां डुबाई जा सकें , बढ़िया । आपको बहुत बधाई ।
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