अपना टूटा चश्मा विनोद की ओर बढ़ाते हुए जमना लाल जी ने कहा – “बेटा मेरा चश्मा कई दिनों से टूटा है , और ये पर्चा लो दवाइयाँ भी “.............। विनोद झुँझला गया – “ क्या पिता जी रोज रोज खिट खिट करते रहते हो मेरे पास इन सब फालतू कामों के लिए बिलकुल समय नहीं है , मै नौकरी करूँ उसकी टेंशन झेलूँ कि आपकी समस्या देखूँ ।” जमना लाल जी कहते रह गए कि – “ बेटा ............. । ”
पर बेटे ने न सुना न उनकी ओर देखा बस अपनी धुन मे चलता चला गया । आज वे थोड़ी थोड़ी लकड़ियां ला ला कर इकट्ठी कर रहे थे । बेटा और बहू ने पूछा – “ पिता जी ये सब क्या है ?”
वे बोले – “ मेरी चिता की सामाग्री । मैंने सोचा तुम्हारे पास फालतू कामों के लिए और फालतू लोगों के लिए समय नहीं होगा । “
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डे जी मुगल शासक तो अपने यहाँ मकबरा इसलिए बनवाते थे कि उनका नाम न मिटे , अपने नाम के लिए करते थे । आपकी दूसरी बात का मै समर्थन करती हूँ कि एकल परिवारों मे समस्या हो जाती है , लेकिन अपने माता पिता का सम्मान करने के लिए उनका ध्यान रखने के लिए तो ये जरूरी नहीं है । जब बच्चे छोटे होते है और माता पिता जवान तब वे अपने बच्चे के लिए खुशियाँ जुटाने की हर संभव कोशिश करते है उनका ध्यान रखते है फिर वे ही माता पिता जब बूढ़े हो जाते है वे अपने बच्चों से थोड़ा समय मांगते है जो कि उनका हक़ है .... परंतु आज की पीढ़ी के पास उनको देने के लिए समय ही नहीं है ।
आ0 गीतिका जी आप एकदम सही कह रही हैं , जो काम स्वतः किया जाना चाहिए उसके लिए किसी अन्य का क्या मुंह देखना । कोई कहेगा तब अपने माता पिता की देख भाल की जाएगी वह एक अहसान के रूप मे ।
आदरणीय जितेंद्र जी आपको कथा पसंद आयी आपका हार्दिक आभार ।
वास्तविक्ता को दर्शाती,
मन को झकझोरती
इस लघु कथा के लिए बधाई,
आदरणीया अन्नपूर्णा जी।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीया अन्न्पूर्णा जी, मुगल शाषकों का अपने लिये मकबरा बनवाने का शायद यही कारण था.
महानगरों में जहाँ एकल परिवार व्यवस्था है ,वहाँ ये समस्या आ जाती है. अकेलेपन का ये भी एक अंजाम है.
सादर.
क्या केवल इसी कारण से माता पिता का ख्याल रखना चाहिए बेटे और बहू को कि कल को बेटे-बहू का बुढ़ापा आएगा, तो उन्हें भी ये उपेक्षित व्यवहार मिलेगा ? फिर तो हम स्वार्थी ही हैं क्यूंकी हम अपने माता पिता कि सेवा नही कर रहे वरन हम अपना भविष्य सुरक्षित कर रहे हैं | मै सोचती हूँ कि क्यूँ भविष्य का कोई अनदेखा तथ्य हमारे ज़िंदगी मे घुसपैठ कर लेता है?
हमारी संवेदना कहाँ चली जाती हैं ?
क्यूँ नहीं हम अपने धर्म का निर्वाह करते ?
क्यूँ नहीं हम अपने जन्मदाता को बिना किसी 'टर्म एंड कंडीशन' के देख भालते है ?
हमारे समाज में ऐसी बातें अक्सर होती ही है, और इन बातों को ध्यान रखते हुए बेटे बहु को यह समझना चाहिए की कल को उनका भी बुढ़ापा आना ही है, और उनके साथ, उन्ही के बेटे बहु ऐसा बर्ताव कर सकते हैं,
बहुत ही सही विषय पर बहुत हृदयस्पर्शी लघुकथा, बहुत बहुत बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा जी
आदरणीय अरुण शर्मा जी अपने कथा के मर्म को समझा , आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीया मंजरी जी आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीया अन्नपूर्णा जी वाह जी जगह लघुकथा पढ़कर आह निकली भीतर निकली, झकझोर दिया आपने कुछ देर तक सुन्न रह गया, पढ़ते पढ़ते मन भर गया और समाप्ति ने तो बस उफ्फ!!!!!!. बहुत बहुत बधाई इस लघुकथा पर बहुत बहुत बधाई आदरणीया.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online