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तुम्हारे पास समय नहीं होगा - लघु कथा

अपना टूटा चश्मा विनोद की ओर बढ़ाते हुए जमना लाल जी ने कहा – “बेटा मेरा चश्मा कई दिनों से टूटा है , और ये पर्चा लो दवाइयाँ भी “.............। विनोद झुँझला गया – “ क्या पिता जी रोज रोज खिट खिट करते रहते हो मेरे पास इन सब फालतू कामों के लिए बिलकुल समय नहीं है , मै नौकरी करूँ उसकी टेंशन झेलूँ कि आपकी समस्या देखूँ ।” जमना लाल जी कहते रह गए कि – “ बेटा ............. । ”

पर बेटे ने न सुना न उनकी ओर देखा बस अपनी धुन मे चलता चला गया । आज वे थोड़ी थोड़ी लकड़ियां ला ला  कर इकट्ठी कर रहे थे । बेटा और बहू ने पूछा – “ पिता जी ये सब क्या है ?”

वे बोले – “ मेरी चिता की सामाग्री । मैंने सोचा तुम्हारे पास फालतू कामों के लिए और फालतू लोगों के लिए समय नहीं होगा । “

 

 

अप्रकाशित एवं मौलिक

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Comment by mrs manjari pandey on September 17, 2013 at 9:20pm

  अनुपमा जी तीखा सच बयां कर दिया. बधाई

Comment by annapurna bajpai on September 17, 2013 at 1:30pm
आदरणीय सालिम शेख जी आपका तहे दिल से शुक्रिया ।
Comment by annapurna bajpai on September 17, 2013 at 1:29pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी , आपका हार्दिक आभार ।
Comment by annapurna bajpai on September 17, 2013 at 1:27pm
आदरणीय शिजू जी आपकी बात कुछ हद तक मै सही मान सकती हूँ आज भी कहीं कहीं संस्कार बाकी है और लोग माता पिता का सम्मान करते है । दूसरी बात , बहुए बेटों को बदल देती है , बेटा क्या इतना बुद्धि और विवेक हीन होता है कि कोई उसको इतना बदल ले ? क्षमा करें ! यहाँ मै आपसे बिलकुल सहमत नहीं हूँ । ये उसका अपना विवेक होना चाहिए कि उसके माता पिता के प्रति उसकी क्या जिम्मेवारियाँ है । उनका निर्वहन बेटे व बहू को मिल कर करना चाहिए । ताली एक हाथ से कभी नहीं बजती । आपने हमारी लघु कथा को अपना बहुमूल्य समय दिया आपका हार्दिक आभार ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 17, 2013 at 10:43am

वाकई मर्मस्पर्शी कथा है, बधाई आपको,
मगर मैने जो अभी तक खासतौर पे अपने आसपास देखा है कि संस्कार अभी तक बाकी है, कोई अपने पिता से तल्ख लहजे मे ऐसे बात नही करता अपने माता पिता का यथोचित सम्मान करता है हाँ लेकिन बहुओं के ऐसे आचरण को मैंने अक्सर महसूस किया है कि शादी के बाद भी बेटी बेटी होती है लेकिन बेटे को बेटा रहने नहीं देती। हर बेटा गलत नहीं होता हर बहू गलत नही होती। लेकिन अक्सर कहानियों मे बेटे को खलनायक बताया जाता है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 17, 2013 at 9:26am

आदरणीया अन्नापूर्णा जी लघु कथा अन्दर तक झकझोर गई ,कम शब्दों में अपना सन्देश देने में कामयाब है यही इसकी ख़ासियत  है बहुत-बहुत बधाई आपको 

Comment by saalim sheikh on September 16, 2013 at 11:59pm
Rishton ke prati nishthur hote hue samaaj ko jhakjhorti hui ek atyant maarmik laghukatha ke liye bahut bahut badhaai
Comment by annapurna bajpai on September 16, 2013 at 11:47pm

apka dhanyvad , adarniya Savitri ji .

Comment by annapurna bajpai on September 16, 2013 at 11:47pm

adarniy Giriraj ji apka katahan satya hai , khichadi sanskriti ne sab duboya hai . is sanskriti ko hi chodna hoga .

Comment by Savitri Rathore on September 16, 2013 at 11:22pm

अन्नपूर्णा जी, मर्मस्पर्शी रचना  हेतु बधाई !

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